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चुनौती: तकनीकी और व्यवसायिक नीतियों के परिवर्तन से स्तब्ध है व्यवसायिक जगत

  • कोरोना, मंदी और महामंदी के बाद तकनीक के करवट लेने से बदल गया है ऑटोमोबाइल बाजार का रूप और स्वरूप

  • आयकर की नई भुगतान प्रणाली से उजड़ जाएगा छोटे मोटे कारोबारियों का व्यापार

  • प्रतिस्पर्धा में अब केवल पूंजी ही नहीं बल्कि व्यवसायिक सफलता के लिए जरूरी है क्रिएटिव एक्टिविटी और संभावनाओं की खोज

  • वर्तमान बाजार में तकनीकी परिवर्तन के कारण कौड़ी के भाव में भी नहीं रह गई है करोड़ों की पूंजी

  • वस्तुओं का निर्माण और क्रय आसान है किंतु बेचना मुश्किल और बेचते रहना चुनौती है

चुनौती

“विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और वेब पोर्टल्स पर नियमित स्तंभ लिखने वाले दार्शनिक शंभू किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इस आलेख में उन्होंने वर्तमान दौर की व्यवसायिक चुनौतियों को रेखांकित करते हुए इससे निपटने के उपायों पर भी प्रकाश डाला है। उनसे मोबाइल नंबर 9934234304 पर संपर्क किया जा सकता है।”
समाचार विचार/पटना: परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत सत्य है, जिसके गर्भ में संभावनाओं के बीज पनप कर वटवृक्ष का रूप धारण कर ही लेते हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान में 1, 2 और 3 फरवरी को आयोजित ऑटोमैकेनीक एक्सपो के दौरान तकनीक के करवट लेने का दृश्य स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा था। तकनीकी परिवर्तन के भूचाल से पारंपरिक और स्थापित व्यवसायिक जगत स्तब्ध है। वर्षों से प्रतिस्पर्धा के बाजार में कोरोना, मंदी और महामंदी के झंझावातों से जूझ रहे व्यवसायों में तकनीकी बदलाव का प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव दिख रहा है। जहां एक ओर बाजार मंदी से मायूस दिख रहा है वहीं दूसरी ओर व्यवसायिक गतिविधियों में संलग्न लोगों का मन भीतर से उदास और अज्ञात भय से ग्रसित है। तकनीक के करवट बदलने से वर्तमान कष्टप्रद और भविष्य असुरक्षित सा दिख रहा है। पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से सरकार के द्वारा उठाया गया यह कदम भले ही प्रशंसनीय और सराहनीय है लेकिन पारंपरिक और स्थापित व्यवसाय में संलग्न व्यवसायियों का वर्तमान सजा संवरा दुनिया बिखर सा गया है। मौजूदा दौर में ऑटोमोबाइल सेक्टर का स्पेयर जगत तकनीकी परिवर्तन के कारण मृतप्राय सा दिख रहा है, वहीं अन्य व्यापार भी नवीन तौर तरीकों की वजह से विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है। शोरूम, दुकानें और विभिन्न कंपनी तो खूब खुलते हुए दिख रहे हैं लेकिन सफल और निरंतर चलने वाले ऐसे प्रतिष्ठान नगण्य हो गए हैं।
अब केवल पूंजी ही नहीं बल्कि व्यवसायिक सफलता के लिए जरूरी है क्रिएटिव एक्टिविटी और संभावनाओं की समय समय पर निरंतर खोज
जब गलाकाट प्रतिस्पर्धा नहीं थी, तब व्यापार पूंजी, परिश्रम और सिस्टम का विषय हुआ करता था लेकिन अब व्यापार सिर्फ अनुभव, स्किल और अपस्किल का विषय रह गया है। व्यवसाय की सफलता के लिए आप विजन पाल सकते हैं, सिस्टम बना सकते हैं, परिश्रम कर सकते हैं, पूंजी लगा सकते हैं लेकिन पोटेंशियल की संभावना पैदा करना एक स्वाभाविक प्रवृत्ति और आवश्यक प्रणाली है। क्षेत्र कोई भी हो, नेतृत्वकर्ता या तो संभावना की तलाश में जुटा रहता है या वर्तमान समस्या से लेकर संभावित समस्याओं के निदान हेतु सदैव प्रयत्नशील रहता है। इसलिए यह कहा भी गया है कि लीडर के विजन पर निर्भर करती है कंपनी की कामयाबी। कर्मियों के प्रशिक्षण से जहां वर्तमान की परेशानी कम होती है वहीं रिसर्च से भविष्य की असीमित संभावना उत्पन्न होती है। एनालिसिस और समीक्षा को किसी भी रणनीति की संजीवनी कहा जाता है। इसी के सफल क्रियान्वयन के बाद ही सफलता और संतुष्टि मिल पाती है।
आयकर की नई भुगतान प्रणाली से उजड़ जाएगा छोटे मोटे कारोबारियों का व्यापार
सरकार के द्वारा एमएसएमई सहित आयकर की नई भुगतान प्रणाली ने न केवल छोटे मोटे कारोबारियों के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है बल्कि इसके दूरगामी दुष्प्रभावों से अन्य व्यापार भी अछूते नहीं रह जाएंगे। बड़े बड़े व्यवसायिक संस्थान और प्रतिष्ठान संस्थागत पूंजी के प्रवाह से प्रतिकूल परिस्थितियों को तो झेल लेते हैं लेकिन छोटे मोटे कारोबारी अपने शौक नहीं बल्कि जरूरत के लिए ऋण और उधार लेकर अपना जीविकोपार्जन करते हैं। इस नई नीति से ऐसे लोगों के समक्ष उत्पन्न होने वाली स्थितियों, परिस्थितियों के प्रति सरकार को उदार बनकर उनके हित में सार्थक और सकारात्मक कदम उठाना होगा। सरकार की इस नई कर भुगतान प्रणाली से छोटे मोटे कारोबारियों के उजड़ने की संभावना प्रबल होती दिख रही है। वर्तमान भारतीय बाजार पहले से ही कोरोना और मंदी की वजह से हैरान और परेशान होकर प्रतिस्पर्धा का दंश झेल रहा है। इस स्थिति में हम सरकार की नई कर भुगतान प्रणाली पर सवाल नहीं उठा रहे हैं बल्कि आग्रह और अनुरोध कर रहे हैं कि जमीनी स्तर पर छोटे मोटे कारोबारियों के समक्ष उत्पन्न आर्थिक संकट की संभावना को दृष्टिगत रखते हुए नीति नियंताओं के द्वारा जनहित में नीतिगत फैसला पर पुनर्विचार करना चाहिए, जो महज कागजी नहीं बल्कि जमीनी सर्वे के उपरांत एनालिसिस करने से ही संभव है, नहीं तो आने वाले कुछ दिनों में भारतीय बाजार की स्थिति खस्ताहाल हो जाएगी।
वस्तुओं का निर्माण और क्रय आसान है किंतु बेचना मुश्किल और बेचते रहना चुनौती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दरअसल वस्तुओं का निर्माण और क्रय आसान है किंतु बेचना मुश्किल और बेचते रहना भीषण चुनौती है। जब कर्मठता में निरंतरता होगी, सर्मपण में भी सजगता होगी, सिस्टम में रचनात्मकता होगी तब जाकर आज के प्रतिस्पर्धी दौर में सफलता प्राप्त होगी। इसके लिए सर्वे, नज़रिया, सिस्टम, कर्मठता, समीक्षा एवं कार्य-रणनीति आवश्यक है। सर्वे में दूरदर्शिता का शामिल होना आवश्यक है। नजरिया स्कील से पैदा होता है। सिस्टम में सजगता हो तभी कामयाबी मिलती है। कर्मठता के लिए निरंतरता जरूरी है। ठीक उसी प्रकार से समीक्षा के लिए ईमानदारी आवश्यक है। कार्य की रणनीतिक सफलता के लिए रचनात्मकता होना भी लाजमी है। वरना आज के प्रतिस्पर्धावादी बाजार में स्थापित होना और हमेशा बने रहना मुश्किल है। स्थापित होने के लिए शुरू में अस्तित्व की लड़ाई लड़ना पड़ता है, और आगे बने रहने के लिए हमेशा संघर्ष की लड़ाई के लिए तैयार रहना पड़ता है। उपरोक्त बिन्दुओं में व्यावसायिक संतुलन नहीं बना पाने के कारण ही असफलता मिलती है, और कार्य करने के दौरान असंतुष्टि का वातावरण तनाव में ला देता है। जैसे ईमानदारी, वफादारी मनुष्य की सफलता का बुनियादी आधार माना जाता है, ठीक उसी प्रकार सकारात्मक सोच, सिस्टम किसी भी संस्थान की संजीवनी होती है।
तकनीकी परिवर्तन के तूफान से निपटने का एकमात्र हथियार है अनुभव और स्किल
मानव जीवन में एक दूसरे के बीच स्थापित होने के लिए दुनिया में संवेदना व सामंजस्य का सहारा लेना पड़ता है। वहीं किसी के बीच स्वयं को या फिर किसी कार्य को स्थापित करने के लिए समायोजन व सिस्टम का सहारा लेना पड़ता है। यदि इन दोनों परिस्थितियों में तारतम्य स्थापित होने में सफल हो गये तो सफलता व संतुष्टि महसूस करते हुए शिखर पर पहुंचना भी आसान सा लगने लगता है। अंदर के भाव के लिए वफ़ादारी, बाहर के लिए ईमानदारी और सिस्टम से चलकर जबाबदेही पूर्वक कार्य निर्वहन और ये सारी बातें हमारी आदत में हों, तो सफलता व संतुष्टि से शिखर पर पहुंचना बिल्कुल ही आसान हो जाता है। शिखर पर पहुँचने वाले और शिखर पर अपनी जगह को कायम रखने वाले उपरोक्त बिन्दुओं से संतुलन बनाये रखते हैं। ग़ौर करने की बात यह है कि मानव अपनी जिंदगी में गलतियां कर भी स्वयं अपने कार्य में संतुलन नहीं बना पाने के कारण असंतुष्ट रहता है,जिसकी वजह से ही असफलता उसके हिस्से में आती है। व्यवसायिक गतिविधियों में संलग्न लोगों को यह सदैव याद रखना चाहिए कि व्यापार शुरू होता है पूंजी से, चलता है सिस्टम से, बना रहता है विश्वास से और आगे बढ़ता है क्रिएटिव एक्टिविटी से। तकनीकी परिवर्तन के तूफान से निपटने के लिए अब केवल अनुभव और स्किल ही एकमात्र हथियार है।

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