लापरवाही: ठगी के पांच महीने बाद दर्ज होगी एफआईआर तो कैसे होगा साइबर क्राइम पर प्रहार

साइबर
साहेबपुरकमाल
➡️राशि की रिकवरी में बाधा बन रही है साइबर थाने की पुलिस की शिथिल कार्यशैली
➡️साइबर अपराधियों का सॉफ्ट टारगेट है बेगूसराय का व्यवसायी वर्ग
समाचार विचार/बेगूसराय: ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के बढ़ते प्रचलन से भले ही लोगों को दैनिक कार्य संचालन में सुविधा हो रही हो, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी दिखने लगे हैं। आप अगर थोड़े से भी लापरवाह हुए तो पलक झपकते ही आपकी गाढ़ी कमाई आपके खाते से फिसलकर किसी दूसरे के खाता में स्थानांतरित हो जाएगी और आप हाथ मलने के अलावा और कुछ नहीं कर पाएंगे। सरकार के द्वारा साइबर क्राइम पर लगाम लगाने हेतु भले ही कई तरह के अवेयरनेस एक्टिविटीज चलाई जा रही हों लेकिन भुक्तभोगियों को यह पता है कि साइबर क्राइम के शिकार होने के बाद उनके चप्पल घिस जाते हैं फिर भी उन्हें परिणाम ढाक के तीन पात ही मिलते हैं। कुछ ऐसा ही मामला साहेबपुरकमाल थाना क्षेत्र के पंचवीर बाजार से प्रकाश में आया है। यहां के एक व्यवसायी अक्टूबर 2024 में साइबर ठगी के शिकार होते हैं लेकिन उनका एफआईआर मार्च 2025 में दर्ज होता है। इन पांच महीनों में पीड़ित की मनोदशा का अंदाजा सहज रूप से लगाया जा सकता है। साइबर क्राइम को रोकने के लिए पुलिसिया दावों की पोल खोलती यह रिपोर्ट आपको भी ऐसी ठगी से बचाने में कारगर साबित हो सकता है।
विनय कंस्ट्रक्शन का हवाला देकर साइबर ठग ने व्यवसायी को दिया झांसा
23 अक्टूबर 2024 को पंचवीर साहेबपुरकमाल पथ पर पेट्रोल पंप के ठीक बगल में सीमेंट बालू के कारोबारी अनंत कुमार सिंह को मोबाइल नंबर 7417990921 से एक अज्ञात व्यक्ति का कॉल आता है, जो खुद को विनय कंस्ट्रक्शन का कर्मी बताते हुए कहता है कि साहेबपुरकमाल, सबदलपुर और उमेशनगर स्टेशन के जीर्णोद्धार का काम उन्हीं की कंपनी करा रही है। साहेबपुरकमाल स्टेशन पर कल रेलवे के अधिकारियों का औचक निरीक्षण है, इसलिए मुझे आज बड़ी मात्रा में बालू और सीमेंट की आवश्यकता है। आप अपना अकाउंट नंबर दीजिए, मैं उस पर दो लाख रुपए ट्रांसफर कर रहा हूं। उक्त व्यक्ति के सहज वार्तालाप से प्रभावित होकर व्यवसायी अनंत कुमार सिंह ने उसे अपना एकाउंट नंबर दे दिया। थोड़ी देर बाद उनके मोबाइल पर 1 लाख 99 हजार रुपए के ट्रांजेक्शन का टेक्स्ट मैसेज आता है। उसके ठीक कुछ देर बाद वह व्यक्ति फोन कर व्यवसायी को कहता है कि  मैंने आपके अकाउंट में राशि भेज दिया है। आप सारा सामान भेज दीजिए। फिर वह कहता है कि मुझे अपने स्टाफ को पेमेंट करना है इसलिए मैं आपको एक स्कैनर भेज रहा हूं। आप उस पर एक लाख भेज दीजिए। ये सारी चीजें इतनी तेजी से होती है कि व्यवसायी अनंत कुमार सिंह उसके द्वारा भेजे गए स्कैनर पर एक लाख रुपए भेज देते हैं। उसके बाद जब वह व्यक्ति पुनः पचास हजार रुपए भेजने का आग्रह करता है तो व्यवसायी का माथा ठनकता है और जब वह अपने बैंक स्टेटमेंट की पड़ताल करते हैं तो पाते हैं कि उनके अकाउंट में एक रुपया भी नहीं आया है। मोबाइल पर आया हुआ टैक्स्ट मैसेज भी फॉल्स था। उसके बाद उक्त ठग का मोबाइल ऑफ हो जाता है।

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1930 पर दर्ज शिकायत के अनुसंधान में तत्परता दिखाती पुलिस तो पीड़ित को मिल सकती थी राहत
साइबर क्राइम के शिकार पीड़ित ने सरकार के द्वारा जारी किए नंबर 1930 पर तत्क्षण शिकायत कर यूटीआर नंबर, अकाउंट नंबर और अन्य वांछित जानकारी उपलब्ध करा देती है। उसके बाद जिस स्कैनर से व्यवसायी ने रुपया ट्रांसफर किया था, उससे लिंक अकाउंट को होल्ड कर दिया जाता है। तफ्तीश में यह पता चलता है कि उक्त अकाउंट की धारक उत्तरप्रदेश के गोंडा निवासी सीएसपी संचालक पूनम जायसवाल है। उससे संपर्क स्थापित करने पर वह स्वीकार करती है कि एक व्यक्ति ने अपने भाई की बीमारी का बहाना बनाकर उसके स्कैनर का इस्तेमाल कर रुपए मंगवाया है। पूनम ने समाचार विचार को बताया कि जब उनका अकाउंट होल्ड किया गया तो उन्होंने साइबर सेल में नवंबर 2024 में ही तहरीर दर्ज करा दी थी और इस मामले में दो ठग को पुलिस ने हिरासत में भी लिया था। लेकिन, बेगूसराय साइबर थाने की पुलिस की शिथिलता का यह आलम है कि वारदात के पांच महीनों बाद जब वह प्राथमिकी दर्ज करती हो तो साइबर ठग को गिरफ्त में लेना तो राई का पहाड़ बनाने जैसा ही है।
राशि की रिकवरी में बाधा बन रही है बेगूसराय पुलिस की शिथिल कार्यशैली
अमूमन इस तरह की साइबर ठगी के बाद पीड़ित राशि की रिकवरी के लिए साइबर थाने का रुख करते हैं लेकिन इस मामले में साइबर थाने की पुलिस की लापरवाही और शिथिलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पीड़ित के द्वारा 24 अक्टूबर 2024 को साइबर थाने में आवेदन दिया जाता है और उक्त मामले की प्राथमिकी 20 मार्च 2025 को दर्ज की जाती है। पुलिस की यह लापरवाही साइबर क्राइम को रोकने के लिए सरकार के द्वारा किए जा रहे दावों के अंत्यपरीक्षण के लिए काफी है। इस मामले में पीड़ित ने बताया कि जब उन्होंने उपभोक्ता संरक्षण आयोग का दरवाजा खटखटाया तो उसके दबाव में आकर पुलिस ने प्राथमिकी तो दर्ज कर ली है, लेकिन राशि की रिकवरी कब होगी, यह अब भगवान भरोसे है।

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