➡️युवा साहित्यकार डॉक्टर अभिषेक ने की भारत के मानचित्र पर वामपंथ के सिकुड़ने की पड़ताल
➡️सप्रेस और डिस्फंक्शनल एप्लिकेशन की वजह से ही अंतिम सांसें गिन रहा है वामपंथ
समाचार विचार/बेगूसराय: वामपंथ को एक नए, जनतांत्रिक, व्यक्ति की गरिमा के आदर की भावना के साथ ख़ुद को पुनः परिभाषित करना होगा। उसे मनुष्य और समाज की इंजीनियरिंग करके उसे उपयोगी बनाने की जगह एक ब्रह्मांडीय और पर्यावरणीय दृष्टि विकसित करनी होगी। भारत की मौजूदा राजनीतिक हालात में यह सब मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं। हमेशा ख़ुद को नए ढंग से खोजने की संभावना बनी रहती है। वामपंथ के क्षरण का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए बेगूसराय के युवा साहित्यकार डॉ. अभिषेक कुमार का यह हस्तक्षेप पठनीय है।
किशोर के युवा मस्तिष्क को हैक कर लेता है वामपंथी विचार
एक किशोर या युवा मस्तिष्क अगर किसी विचारधारा से बहुत जल्दी और सर्वाधिक प्रभावित होता है तो वह विचारधारा है वामपंथी विचारधारा। आखिर ऐसा क्योँ होता है ? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें वामपंथ के जज्बाती छोड़ों को छूने के साथ – साथ शरीर क्रिया विज्ञान की भी पड़ताल करनी होगी। वामपंथ सामाजिक साम्य की बातें करता है, अत्याचार और शोषण के विरुद्ध डटकर खड़ा होने की वकालत करता है, सर्वहारा के उत्थान की बात करता है, जातिमुक्त समाज के निर्माण की बात करता है, स्त्री स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की बातें करता, किसान – मजदूरों के हितों की पैरोकारी करता है, युवा और छात्रों के उत्थान और अवसर का हिमायती है। वामपंथ और भी बहुत सी बातें करता है, जिससे एक किशोर मस्तिष्क को यह प्रतीत होता है कि यह लीक से कुछ अलग है। कुछ नयापन है इसमें और बात – बात में ” क्रांति के लिए जज्बाती वामपंथी सगल ” हार्मोन परिवर्तन के कारण अपने अस्तित्व को तलाशते किशोरों के आक्रोश को भुनाने में सफल हो जाता है। युवावस्था या किशोरावस्था किसी भी इंसान के जीवन का वह दौर होता है, जिसमे शरीर में अधिकतम ऊर्जा पायी जाती है। अगर इस अवस्था में एक इंसान को सही संगत और साकारात्मक मार्गदर्शन मिले तो इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है। साथ ही युवावस्था ही वह अवस्था है, जिसमें इंसानों के अंदर गलत संगति अथवा गलत मार्गदर्शन के कारण अपने कर्तव्य पथ से विमुख होने की संभावना सर्वाधिक होती है। एक हल्का सा डायवर्जन भी युवाओं को उसके लक्ष्य से कोसों दूर कर देता है। उम्र के इस पड़ाव की एक और खासियत यह होती है कि इस दौर में युवाओं पर विभ्रम भी सर्वाधिक रूप से हावी होता है। विभ्रम वह मानसिक अवस्था है, जिसमें एक युवा वास्तविक दुनिया की कड़वी सच्चाई से कटकर खुद के द्वारा निर्मित आभासी दुनिया में या दिखाए गए वैचारिक सब्जबाग में बुरी तरह से उलझ जाता है। फलतः लगभग हर किशोर या युवा मस्तिष्क कुछ अंशों में ही सही लेकिन वामपंथी तो हो ही जाता है। हम कह सकते हैं कि वामपंथी विचारधारा एक वैसा हैकर विचारधारा है, जो किशोर मस्तिष्क को हैक करने में सर्वाधिक सफल होता है।
हालांकि, एक विचार के रूप में आज भी जिंदा है वामपंथ
अब यहाँ विचारणीय तथ्य यह है कि जब वामपंथी विचारधारा मस्तिष्क को हैक करने में इतना सक्षम है तो आज विश्व और भारत के मानचित्र पर वामपंथ सिकुड़ता क्योँ जा रहा है ? इस सवाल का जवाब बहुत ही रोचक है – हैक मस्तिष्क के साथ अस्तित्व तलाशते किशोर – युवा जब उम्र बढ़ने के साथ – साथ विचार मंथन के साथ – साथ बौद्धिकता की ओर उन्मुख होते हैं और यथार्थ की खुरदुरी सतह से टकराकर जख्मी होते हैं या जिन्दगी की सच्चाई से रूबरू होते हैं तो उनके मस्तिष्क में कुछ दूसरा एप्लिकेशन डाउनलोड होता है, जिसके कारण वामपंथी विचारधारा या तो सप्रेस हो जाती है या ननफंक्शनल होकर मस्तिष्क के किसी कोने में पड़ी रहती है अथवा कुछ व्यक्ति को तो नए एप्लिकेशन डाउनलोड करने के लिए अपने मस्तिष्क की मेमोरी से वामपंथी एप्लिकेशन को डिलीट करना पड़ता है। बौद्धिक विकास प्रक्रिया का एक दूसरा पहलू भी है। बहुत से युवा – किशोर के मस्तिष्क में उम्र बढ़ने के साथ – साथ वामपंथी विचार एप्लिकेशन अधिक सक्रिय हो जाता है। जिस युवा – किशोर में ऐसा होता है, वो भी यथार्थ की खुरदुरी सतह से टकराकर जख्मी तो होते हैं लेकिन इस एप्लिकेशन की सक्रियता के कारण सुन्न पर चुके संवेदी अंगों को दर्द का अहसास नहीं होता। हालांकि नई पीढ़ी में ऐसे युवा – किशोरों की संख्या अत्यधिक कम होती है, इसलिए वामपंथ सिकुड़कर भी साँसें ले रहा है और एक विचार के रूप में आज भी जिंदा है।
सप्रेस और डिस्फंक्शनल एप्लिकेशन की वजह से ही अंतिम सांसें गिन रहा है वामपंथ
सप्रेस और डिस्फंक्शनल वामपंथी एप्लिकेशन समय – समय पर सक्रिय होते रहता है, जिसके कारण वामपंथ समाज के भीतर जम्हाई लेकर अपने जिंदा होने का प्रमाण समय – समय पर प्रस्तुत करते रहता है। सप्रेस और डिस्फंक्शनल वामपंथी एप्लिकेशन की वजह से ही समाज में व्यापक पैमाने पर वामपंथ एक जीवनशैली के रूप में तो स्वीकार्य है मगर राजनीतिक विचारधारा के रूप में व्यापक तौर पर अस्वीकृत भी हो रहा है। बहरहाल इससे इनकार नहीं कि एक किशोर – युवा के मस्तिष्क का एक चौथाई का आधा या एक चौथाई मस्तिष्क वामपंथी होने के वावजूद भी इसका लागातर सिकुड़ते जाना बौद्धिक विकासक्रम में इसके हृदयग्राही नहीं रह जाने का प्रमाण है।

Author: समाचार विचार
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