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आस्था: कभी भी निष्फल नहीं जाती है मां कात्यायनी की आराधना और परोपकार की प्रवृति

  • साल के प्रथम दिन दार्शनिक शंभू के नेतृत्व में पिछले पैंतीस वर्षों से संगम मोटर्स परिवार साधु, संतों, भिक्षुकों और पशु पक्षियों को ग्रहण कराती आ रही है भोजन रूपी प्रसाद

  • प्रतिवर्ष नववर्ष के दिन माता के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं हजारों श्रद्धालु

  • परवरिश और प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली कंपनी मार्क बेयरिंग और ए. एन. भी प्राइवेट लिमिटेड का आभार प्रकट करते हुए दिया कृतज्ञता का संदेश

  • देश की 51 शक्तिपीठों में से एक मां कात्यायनी भगवती की दायीं भुजा आज भी मंदिर में है मौजूद

आस्था

समाचार विचार/पटना/खगड़िया: स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देने की प्रवृति ही भक्ति है। जब आत्मा परमात्मा की डोर से बंध जाती है तो उसके विचारों में पवित्रता आ जाती है। उसका अहंकार तिरोहित हो जाता है,वह सम भाव के साथ नर सेवा को ही नारायण सेवा समझने लगता है और नश्वर मानव जीवन को धन्य करने में जुट जाते हैं। आज मां कात्यायनी शक्तिपीठ में खुद की मौजूदगी उसी भक्ति का प्रतिफल है जिसने मुझे यहां तक खींच लाया है। कहा भी गया है कि सच्ची भक्ति और परोपकारी भाव से भगवान भी भक्त के वश में हो जाते हैं। उक्त बातें दार्शनिक शंभू ने खगड़िया स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां कात्यायनी के पावन दरबार में पूजन अर्चन के उपरांत आयोजित सहभोज को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि प्रकृति के गोद में बसी इस शक्तिपीठ के प्रांगण में उपस्थिति मात्र से भक्ति भाव जागृत होने से नकारात्मक अवगुणों का स्वतः तिरोहित हो जाना ही मां का आशीर्वाद है। उन्होंने कहा कि उन्हें यहां आकर अपनी अंतस चेतना में ईश्वर की साक्षात अनुभूति हो रही है। उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति से आंतरिक शक्ति मिलती है और आत्मविश्वास जागृत होता है जिससे नव ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति को हर काम में सफलता मिलती है। उन्होंने कहा कि मां कात्यायनी की कृपा से ही व्यक्ति के अंतःकरण में परोपकारी प्रवृति की उत्पत्ति होती है और ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ जैसी आसुरी प्रवृतियों का नाश होता है जिससे उसके सोच, संबंध और स्वास्थ्य में संतुलन पैदा होता है, जो उसके सर्वांगीण उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा कि आर्थिक समृद्धि तो येन केन प्रकारेण अर्जित की जा सकती है लेकिन मानव जीवन को धन्य बनाने के लिए परोपकारी प्रवृति, सेवा और सहनशीलता का होना अत्यंत आवश्यक है। आस्था: कभी भी निष्फल नहीं जाती है मां कात्यायनी की आराधना और परोपकार की प्रवृति
साधु,संतों, भिक्षुकों और पशु पक्षियों के सामूहिक भोजन की परंपरा का भी करते हैं निर्वहन
इस दौरान दार्शनिक शंभू के नेतृत्व में संगम मोटर्स खगड़िया परिवार के सदस्यों ने पिछले पैंतीस वर्षों से इस परंपरा का निर्वहन करते हुए इस वर्ष भी मंदिर परिसर में साधुओं, संतों, भिक्षुकों और पशु पक्षियों को भोजन रूपी प्रसाद ग्रहण कराया। इस दौरान मंदिर परिसर में मौजूद साधु, संतों, भिक्षुकों और पशु पक्षियों के बीच विशेष प्रसाद चूड़ा दही, खीर और पेड़ा का भी वितरण किया गया।
परवरिश और प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली कंपनी मार्क बेयरिंग और ए. एन. भी प्राइवेट लिमिटेड का आभार प्रकट करते हुए दिया कृतज्ञता का संदेश
उन्होंने जहां एक ओर माता के दरबार में परिवार, समाज, सहयोगी, अपने बंधु बांधवों और इष्ट मित्रों के स्वास्थ्य और समृद्धि की मंगल कामना की, वहीं दूसरी ओर उन्होंने संगम मोटर्स को परवरिश और प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली देश की प्रतिष्ठित और चर्चित कंपनी मार्क बियरिंग प्राइवेट लिमिटेड एवं उनके एमडी मनसुख मकाडिया और लुधियाना पंजाब की चर्चित कंपनी ए.एन.भी प्राइवेट लिमिटेड एवं उनके एमडी अंकुर गोयल के प्रति भी उन्होंने कृतज्ञता प्रकट करते हुए आभार व्यक्त किया। उन्होंने मां के दरबार में कहा कि अंतिम सांसों तक इन कंपनियों के विजन को किसी भी तरह पूरा करेंगे वहीं इन कंपनियों के विश्वास को कभी मरने नहीं देंगे। यह मेरे जीवन का संवेदनात्मक भाव से लिया गया आध्यात्मिक संकल्प है। उन्होंने यह भी कहा कि जो कृतज्ञ है, वही सही मायने में आध्यात्मिक हो सकता है। मौके पर मंदिर न्यास समिति के प्रबंधक युवराज शंभू, दयानिधि प्रसाद सिंह, दार्शनिक शंभू, नीलम सिंह, सुभाष कुमार, राकेश कुमार, संजय कुमार सिंह, हितेश कुमार सिंह, सुबोध कुमार, हरेराम कुमार, शशि कुमार, मनोज कुमार, बलराम मालाकार, आयुष उर्फ राज आदि मौजूद थे।
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देश की 51 शक्तिपीठों में से एक मां कात्यायनी भगवती की दायीं भुजा आज भी मंदिर में है मौजूद
नदियों के बीच सुदूर फरकिया इलाके में बसे मां कात्यायनी के दरबार की महिमा अपार है।मां दुर्गा के छठे रुप में जानी जाने वाली मां कात्यायनी के इस सुप्रसिद्ध मंदिर की ख्याति दूर देश तक है। मूल रुप से खगड़िया जिले के फरकिया इलाके में स्थित धमारा घाट रेलवे स्टेशन के समीप माता रानी विराजमान हैं।51 शक्तिपीठ में से एक मां कात्यायनी भगवती की दांयी भूजा आज भी इस मंदिर में मौजूद है। जिसकी पूजा वर्षों बरस से होती आ रही है।नवरात्रा के समय में मंदिर की अलौलिक छंटा नजर आती है। लोग दूध व दही लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं।दूध का अर्पण करने के बाद दही चूड़ा का भोजन खुद भी करते हैं और दूसरों को भी कराने की परंपरा आज भी यहां कायम है।
स्कंद पुराण में वर्णित है मां कात्यायनी की महिमा
मां कात्यायनी मंदिर की चर्चा स्कन्दपुराण में भी की गयी है। इसके अनुसार कालांतर में कात्यायन ऋषि कोसी नदी के तट पर रहते थे। जो प्रत्येक दिन कोसी नदी में स्नान-ध्यान कर मां कात्यायनी की आराधना किया करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर मां भगवती ने दर्शन दिया तब से यह मंदिर मां कात्यायनी मंदिर के रुप में विख्यात हो गया। इस मंदिर में मां भगवती की दाईं भुजा विराजमान है, जिसकी आराधना की अलग परंपरा है। इस मंदिर में देश के विभिन्न भागों के अलावा विदेशों के भी श्रद्धालु मत्था टेकने आते हैं।कहा जाता है कि माता रानी के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से आराधना करता है, उसकी हर मुराद मां कात्यायनी पूरी करती हैं।

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