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अनुमानों के आईने में अब दिखने लगा है बेगूसराय लोकसभा सीट का चुनावी परिणाम
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सातों विधानसभा की जमीनी हकीकत को बयां करती वागीश आनंद की पठनीय प्रस्तुति
समाचार विचार/बेगूसराय: वैचारिक रूप से सजग बेगूसराय में चुनावी शोरगुल के बाद केवल और केवल एक ही सवाल जेहन में कौंध रहा है कि इस बार कौन मारेगा बाजी? चौक-चौराहे से लेकर चाय पान की दुकान, पार्टी कार्यालय से लेकर बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र के उत्सुक लोग अपने सगे संबंधियों को फोन करके पूछ रहे हैं कि आपके इधर क्या हुआ ? सामने मिलने पर हाल चाल बाद मे पूछते हैं, पहले यही पूछते हैं कि किनका चांस है ? उत्सुकता का आलम यह है कि गांव के दालान पर नौजवानो और बुजुर्गो में बहस हो रही है कि कमल आगे है या हंसुआ ? इसी मौजूदा माहौल को कलमबद्ध करती वागीश आनंद की यह रिपोर्ट।
आइए पहले समझते हैं हॉट सीट बेगूसराय का चुनावी बीजगणित
चुनावी रणभूमि में अवधेश राय और गिरिराज सिंह समेत सभी प्रत्याशी का भाग्य ईवीएम में कैद हो चुका है। सात विधानसभा से घिरे इस लोकसभा क्षेत्र में मतदान के प्रति लोगों को लाख जागरूक करने के बावजूद 21 लाख 96 हजार 89 वोटरों में से 12 लाख 89 हजार 76 वोटर ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। विधानसभा के नजरिए से देखें तो चार विधायक महागठबंधन के हैं, जबकि तीन विधायक एनडीएके। एनडीए के एक विधायक राज्य में मंत्री भी हैं, जबकि एनडीए के हैवीवेट उम्मीदवार केन्द्र में मंत्री हैं। वहीं उनके प्रतिद्वन्द्वी भी राजनीति के अनुभवी खिलाडी हैं। उनके पास तीन – तीन बार विधायक बनने का अनुभव है। वहीं मंत्री जी सांसद का तीसरा चुनाव लड़ रहे हैं। अभी तक उन्होने पराजय का मुंह नही देखा है। जबकि सच्चाई यह है कि दोनों बार उन्होंने नयी पिच पर बैटिंग की है। पहली बार वे पुरानी पिच पर दूसरी पारी खेलने उतरे हैं। पांच साल की पुरानी पिच पर, सांसद की अनुपलब्धता, भाषा शैली व विकास की चर्चा की घुमावदार स्पीन का सामना कर रहे हैं मंत्री जी।
इन बिंदुओं से पहले समझते हैं कि क्या है भाजपा की जीत का आधार
पांच किलो राशन का वितरण: केंद्र सरकार के द्वारा निर्धन परिवार को वर्ष 2020 से ही मुफ्त में चार किलो गेंहू व एक किलो चावल मिल रहा है। बेगूसराय में ऐसे लाभार्थी की संख्या अच्छी खासी है। उन्हें लगता है कि सरकार बदलते ही यह स्कीम बन्द हो जाएगी, इसलिए ऐसे लोगों के द्वारा भाजपा को वोट देना लाजिमी है। महागठबंधन के लिए केन्द्र सरकार द्वारा मुफ्त राशन वितरण चिन्ता का विषय है।
महिला वोटरों का समर्थन: महिला मतदाता स्वभावतः अंतर्मुखी होती है। वह मतदान की गोपनीयता को बनाए रखती है। चाहे मोदी के प्रति आकर्षण हो या नीतीश कुमार के प्रति लगाव, महिलाओं का स्नेह अभी भी एनडीए के प्रति कायम है। कितने परिवार में वोट के नाम पर वैचारिक असमानता देखने को मिली है। महिलाओं का भाजपा उम्मीदवार के प्रति अहर्निश स्नेह महागठबंधन के लिए चिन्ता का कारण है।
कम नहीं हुआ है मोदी मैजिक: अभी भी बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में मोदी का आकर्षण कायम है। अनपढ, बुजुर्ग महिला भी मोदी- मोदी का रट लगाते दिखते हैं। मोदी के समर्थन में अगर लहर नहीं है तो मोदी विरोध में हवा भी नही चल रही है। जन-जन तक मोदी के नाम का फैलाव महागठबंधन के लिए चिन्ता की लकीर उत्पन्न करती है।
रूठे को मनाने में कामयाबी: चुनाव की घोषणा होते ही स्थानीय सांसद के प्रति नाराजगी अधिक थी। खासतौर पर उनके स्वजातीय में ही। लेकिन मतदान तिथि के दिन तक तकरीबन 90% नाराज लोगों को मनाने मे कामयाबी हासिल की। प्रतिद्वंदी नाराज वोटर को अपने पाले में खींचने की कोशिश में था। लेकिन नाराज लोगो के पुनः घर वापसी से महागठबंधन खेमा में उदासी है।
प्रधानमंत्री का चेहरा: “मोदी से बैर नही, गिरिराज तेरी खैर नही” का नारा बुलंद करनेवाले भी मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना मत भाजपा को देने के लिए तत्पर दिखे। सुदूर देहात में भी मोदी को पीएम बनाने के लिए उत्साह दिखा है। वहीं, विपक्षी खेमे के पास मोदी के समकक्ष चेहरे का अभाव होना, महागठबंधन के लिए चिन्ता का कारण बनी।
धुरंधरो का चुनाव प्रचार में आना: केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को जिताने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, असम के सीएम हेमंत विश्वा सरमा, चिराग पासवान, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी समेत तमाम दिग्गज आए। अपनी बातों से मतदाताओ को प्रभावित भी किया। अंतिम दिन योगी व हेमंत विश्वशर्मा ने आकर माहौल को अनुकुल बनाने का कार्य किया। स्टार नेताओं से चारों दिशा में सभा करवाकर बीजेपी ने अच्छी रणनीति बनाई। यह रणनीति महागठबंधन को परेशान कर रही है।
अब देखते हैं भाकपा के जीत का क्या है आधार
मुस्लिम उम्मीदवार की अनुपस्थिति: परिसीमन के बाद पहली बार 2009 में चुनाव हुए थे। ये चौथा चुनाव है। पहली बार ऐसा है कि किसी प्रमुख दल से कोई मुस्लिम प्रत्याशी नही खडे हैं। 2009 में मोनाजिर साहब जद यू से तथा 2014 व 2019 में राजद की ओर से तनवीर हसन खडे थे। भाजपा गठबंधन ने 2009 में अपने समर्थक वोट व मुस्लिम उम्मीदवार के कारण उनके समर्थक वोट से जीत हासिल की। वहीं 2014 व 2019 में धार्मिक ध्रुवीकरण करके एनडीए ने विजय पताका लहराई थी। इस बार दोनों दमदार पक्षों में से मुस्लिम उम्मीदवार की अनुपस्थिति से धार्मिक कोण उत्पन्न नहीं हो पाया। एनडीए के लिए यही चिन्ता की बात है।
तीसरा कोण का अभाव: दूसरे पक्ष की ओर चलें तो 2009 में निर्दलीय बोगो सिंह ने अपनी उम्मीदवारी देकर तीसरा कोण बनाने की कोशिश की थी, उनकी यही कोशिश एनडीए की जीत का कारण बनी। बात 2014 की करें तो उस समय भी भाकपा व जद यू गठबंधन के उम्मीदवार राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने तीसरा कोण बनाया था। परिणामस्वरूप एनडीए उम्मीदवार की जीत हुई थी। वर्ष 2019 में भी कन्हैया और तनवीर हसन दोनों मैदान में थे, लेकिन बडे अंतर से जीत हासिल कर भाजपा ने अपनी ताकत दिखाई थी। यह जीत भाजपा की वास्तविक जीत थी। इसमें समीकरण व ध्रुवीकरण मायने नहीं रख रहा था। लेकिन इस बार कोई तीसरा कोण नही है। यह एनडीए के लिए चिन्ता का कारण है।
विरोधी लहर: वर्ष 2009 से देखें तो अभी तक कोई भी सांसद रिपीट नही हुए। कारण चाहे पार्टी के द्वारा हो या परिस्थितिजन्य। यही कारण है कि वर्तमान सांसद को विरोधी लहर का सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन इस बार कहानी अलग है। वर्तमान सांसद ही उम्मीदवार हैं, इसलिए विरोधी लहर से रूबरू हो रहे है । एनडीए खेमे के लिए तनाव का कारण यह भी है।
अति आत्मविश्वास: पिछले चुनाव में मिली चार लाख से अधिक वोटो की जीत से भाजपा खेमा अति आत्मविश्वास का शिकार हुई है। यही कारण है कि पिछले वर्ष की तुलना में वह बूथ मैनेजमेंट सही तरह से नहीं कर पाई। कई बूथ पर विश्व की सबसे बडी पार्टी का पोलिंग एजेन्ट भी नही था। इसी कारण से वह मतदाताओ को पर्ची व अंतिम अनुरोध भी नही कर पाई। आखिरी अपील से महरूम होना भी भाजपा के लिए चिन्ता का कारण है।
नया दांव: अभी तक तीनों चुनाव में राजद या भाकपा की तरफ से या तो सवर्ण या मुस्लिम उम्मीदवार होते थे। पहली बार अतिपिछडा वर्ग से उम्मीदवार देकर महागठबंधन ने नया फार्मूला बनाया है। नये सूत्र (जातीय ध्रुवीकरण) से पुराने सूत्र( धार्मिक ध्रुवीकरण) को मात देने की कोशिश से भी एनडीए खेमा परेशान है।
स्थानीय मुद्दे: इस चुनाव में जहां महागठबंधन स्थानीय उम्मीदवार व स्थानीय मुद्दे पर केंद्रित कर मतदाताओ को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा। दिनकर विश्व विद्यालय की स्थापना, जयमंगलागढ का जीर्णोद्धार, गढहारा यार्ड की स्थिति, प्रदूषण, बेरोजगारी व मंहगाई की मांग कर अपने आप को मतदाताओ के करीब पहुंचाने की कोशिश में लगा रहा। वहीं डबल इंजन लगने के बाद भी बेगूसराय की गाड़ी, विकास की पटरी पर तेज रफ्तार से दौड नहीं पाई। यह एनडीए के लिए चिन्ता का कारण बनी।
आइए अब समझते हैं सातों विधानसभा की जमीनी हकीकत
बछवाडा: यह विधानसभा क्षेत्र बेगूसराय के उत्तर में स्थित है। इंडिया गठबंधन के अवधेश राय यहां के स्थानीय निवासी हैं और यहां से तीन बार विधायक रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर यहां पहली बार कमल का फूल खिलाने वाले मेहता जी राज्य में खेलमंत्री हैं। यहां के 1,91,344 मतदाताओ ने अपना वोट गिराया है। यहां वर्षो से रामदेव राय व अवधेश राय के बीच राजनीतिक संघर्ष होते रहा है। पिछडे वर्ग की बहुलता व स्थानीय उम्मीदवार होने का लाभ राय जी को मिला है। सवर्ण वर्ग एनडीए के पीछे गोलबंद है। ऐसी स्थिति में, राय जी को यहां एक लाख के आसपास वोट आने की उम्मीद है और यहां एनडीए उम्मीदवार से दस से पंद्रह हजार वोट की बढत प्रथम दृष्टया में साफ साफ दिखती है।
तेघड़ा: बछवाडा विधानसभा से सटे तेघडा विधानसभा में फिलहाल भाकपा के विधायक हैं। यहां मोदी मैजिक का असर दिखता है । सवर्ण मतदाता की बहुलता व मोदी मैजिक के सहारे यहाँ भाजपा का पलड़ा भारी है लेकिन भाकपा का कैडर वोट, मुस्लिम मतदाताओ की एकजुटता महागठबंधन के पक्ष में है। 1,82,412 मतदाताओं ने यहां मताधिकार का प्रयोग किया है। भाजपा को 90000 से 95000 मत मिलने की उम्मीद की जा सकती है। यहां बढत अधिकतम 10,000 तक प्राप्त कर सकती है।
मटिहानी: मटिहानी विधानसभा इस बार सबसे अधिक चर्चा में रहा है। क्षेत्र के पूर्व विधायक बोगो सिंह विरोधी तेवर अख्तियार किए हुए थे। जीवन में पहली बार बोगो सिंह कम्युनिस्ट का साथ दे रहे थे। यहां अगडा व पिछडा कार्ड खूब चला है। लेकिन सवर्ण मतदाताओ की बहुतायत से यहां भाजपा का पलडा भारी है। सातों विधानसभा में से सबसे अधिक मतदान यहां हुआ है। 2,15,897 वोट में से भाजपा को 1,15,000 से 1,20,000 तक वोट आ सकते हैं। बढत की बात करें तो अधिकतम 20,000 से 25000 की बढत भाजपा को मिल सकती है।
बेगूसराय: बेगूसराय नगर में भाजपा के विधायक हैं। शहरी व वैश्य मतदाताओं की बहुतायत, भाजपा को मजबूत बनाती है। यहां 200534 मत पडे हैं। वोटों का ध्रुवीकरण होने से महागठबंधन को भी वोट मिला है लेकिन पलडा भाजपा का ही भारी है। भाजपा को यहां एक लाख से लेकर एक लाख पांच हजार वोट आने की संभावना है। महागठबंधन तकरीबन 20000 के आसपास इस क्षेत्र में पिछड़ सकती है।
साहेबपुरकमाल: यह विधानसभा जिले के पूरब में स्थित है। अल्पसंख्यक मतों की अधिक संख्या महागठबंधन को मजबूत बनाती है। ऊपर से राजद विधायक का साथ भी है। वोटों का ध्रुवीकरण होने पर भी महागठबंधन का पलडा भारी है। यहां 20,000 से 25000 की बढत राय जी को मिल सकती है। लेकिन कम मतदान उन्हें चिन्ता में डाल रही है। यहां 80000 से 85000 वोट उन्हें आ सकता है। इस विधानसभा क्षेत्र में मात्र 1,59,422 मतदाता ने मतदान में भाग लिया है।
बखरी: बखरी विधानसभा में भी भाकपा के विधायक हैं। कुशवाहा वोटों में बिखराव का लाभ महागठबंधन को मिलता दिख रहा है। 1,78,101 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। यहां एक लाख वोट के आसपास महागठबंधन प्राप्त कर तकरीबन 20000 से 25000 की बढत बना सकती है।
चेरियाबरियारपुर: हार जीत के लिहाज से यह विधानसभा बेहद महत्वपूर्ण है। यहां से बढत हासिल करने वाली दल अंतिम परिणाम में फायदे में रहेगी। यहां राजद के विधायक समाजवादी राजवंशी महतो हैं। कोयरी वर्ग की एकजुटता, भाजपा के लिए फायदेमंद है जबकि बिखराव से महागठबंधन फायदे में रहेगी। ध्यान देने वाली बात यह है कि बेगूसराय के किसी भी क्षेत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभा नही हुई परिणामस्वरूप एनडीए का आधार वोट (कोयरी- कुर्मी) के साथ सम्बन्ध फेवीकोल वाला नहीं रहा। इस विधानसभा में 1,61,366 मतदान हुआ है । जाहिर सी बात है दोनो पक्ष बढत लेने की कोशिश करेंगे।
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अंततः बेहद रोमांचक होगा चुनाव का परिणाम
बेगूसराय में पिछली बार भाजपा प्रत्याशी को कुल मतों का 57.44% वोट प्राप्त हुआ था। इस बार पिछले समर्थक में से 5 में से 1 मतदाता सत्तारूढ दल से नाराज हैं। ऐसी स्थिति में इस बार गिरिराज सिंह को न्यूनतम 11.488% मतों की कमी आएगी। यह स्थिति होने पर उन्हें इस बार 45.952% मत प्राप्त होगे। संक्षेप में कहें, तो मंत्री जी को न्यूनतम 5,92,356 मत प्राप्त होंगे। भाकपा के लिहाज से देखें तो पिछली बार भाकपा को 22.4% मत प्राप्त हुए थे। साथ ही साथ राजद को 16.45%। दोनों मतों को जोड़कर देखने पर 38.85% प्राप्त होते हैं। पिछली बार की तुलना में प्रत्येक 8 मतदाताओं में से 1 मतदाता छिटका है। ऐसी स्थिति में पिछली बार के स्थिर मतदाता 34% महागठबंधन के पास शेष बचे हैं। एनडीए के असंतुष्ट मतदाता 11.488% को जोड़कर 1% अन्य उम्मीदवार को घटाने पर यह संख्या 44.488% पर आकर ठहरती है। मतलब यह कि अवधेश राय को कम से कम 5,73,484 मत प्राप्त होंगे। दोनों ही स्थिति बता रही है कि चुनाव परिणाम बेहद रोमांचक होंगे। हार व जीत कम मतों से ही होगी। तभी तो मतदान समाप्ति के एक सप्ताह बाद तक भी कोई भी पक्ष दिल पर हाथ रखकर नही कह रहा है कि मेरी जीत पक्की है। इन आंकड़ों का आकलन कर क्या आप भी ऐसा कह सकते हैं?
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Author: समाचार विचार
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