पच्चीस साल बेमिसाल: आज ही के दिन दैनिक जागरण ने दी थी बिहार में दस्तक

दैनिक जागरण
➡️जागरण को रोकने के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी अखबार हिंदुस्तान ने अपनाई थी साम-दाम-दंड और भेद की नीति
➡️लालू यादव ने ही सरकारी विज्ञापन के लिए जागरण को किया था सूचीबद्ध
दैनिक जागरण
समाचार विचार/पटना/बेगूसराय: दैनिक जागरण आज बिहार यात्रा के 25 वर्ष को पूर्ण कर रहा है। बिहार की डिजिटल पत्रकारिता के पुरोधा और वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर वात्स्यायन लिखते हैं कि  2011 में हमने दैनिक जागरण की नौकरी न छोड़ी होती, तो साथ के 25 वर्ष मेरे भी पूरे होते। खैर, ये सच है कि आज अखबार में नौकरी करते हुए हमने रिपोर्टिंग की बारीकियां सीखी और आगे दैनिक जागरण ने मुझे प्रबंधन/मैनेजमेंट समझाया। अगर इनदोनों का सम्मिश्रण न होता, तो आज LiveCities को हम इतना बड़ा नहीं बना पाते। दैनिक जागरण में मेरी भर्ती की कहानी भी दिलचस्प है। एक नई क्रांति के साथ दैनिक जागरण बिहार में दस्तक देने वाला था। बिहार के किन पत्रकारों को साथ लेना जरुरी है, इसे लेकर दैनिक जागरण प्रबंधन ने बिहार को जानने वाले देश के 3 बड़े पत्रकारों से एक सूची बनवाई थी और इस सूची में 7 ऐसे नाम थे, जो सभी 3 सूचियों में शामिल थे। संयोग से मैं भी इनमें से 1 था। दैनिक जागरण की संपादकीय नीति को लेकर कुछ भ्रांति फैला दी गई थी, इसे लेकर बहुत सारे लोग पहले जुड़ने से बच रहे थे। मुझे इससे कोई वास्ता नहीं था। अखबारी दुनिया में हमने पहली बार स्वस्थ पेशेवर रवैया देखा। कानपुर से आई टीम ने मुझसे संपर्क किया। मिलना चाहते थे। लेकिन, हमें डर था, मुलाकात की बात खुली, तो आज अखबार की मेरी नौकरी भी चली जाएगी।इसका रास्ता निकाला गया। गुप्त मुलाकात को शैलेन्द्र दीक्षित जी, जे के द्विवेदी जी, आनंद त्रिपाठी जी और रामाज्ञा तिवारी जी 1999 के आखिरी महीनों में रिक्शे से मुझसे मिलने को मेरे मित्र संदीप के आफिस में एस पी वर्मा रोड आए। बात बन गई। अब मेरी मुलाकात मालिक सुनील गुप्ता जी और आदरणीय विनोद शुक्ला जी से कराई जानी थी। इसके लिए मुझे किदवईपुरी के रश्मि काम्प्लेक्स में चुपके से पहुंचना था। अगले दिन पहुंचा तो चौथे तल्ले के गेट पर ही अजय पांडेय मिल गए, इन्होंने मुझे रोक दिया, तो मैं भी गुस्सा गया। अजय पांडेय पहले आज अखबार में ही थे, आज पता चल रहा था, ये दैनिक जागरण आ गए हैं। मुझे लगा, यह तो सारा भांडा ही जॉइन करने के पहले फोड़ देंगे। खैर, मेरे आने की सूचना मिलते ही शैलेन्द्र दीक्षित जी आए और सुनील गुप्ता जी-विनोद शुक्ला जी से मिलाने को ले गए। उन दिनों पटना के कुछ ही पत्रकारों के पास मोबाइल फोन थे। मैं न सिर्फ उनमें शामिल था, बल्कि सबसे लैटेस्ट हैंडसेट मेरे पास था। ये देख मिलने वाले सभी इंप्रेस हुए। कुछ सवालात हुए, संपर्क की तहकीकात हुई और मेरी भर्ती कंफर्म हो गई। यह जानते हुए भी कि तत्कालीन सरकार से मेरे रिश्ते चारा घोटाले और जंगल राज की रिपोर्टिंग के बाद अच्छे नहीं हैं। सुनील गुप्ता जी को ये अच्छा लगा कि बिहार से संबंधित हर जानकारी को हम बैठे-बैठे अपने मोबाइल के माध्यम से पता कर दे रहे थे।
दैनिक जागरण
जागरण को रोकने के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी अखबार हिंदुस्तान ने अपनाई थी साम दाम दंड और भेद की नीति
सरकारी अड़चन के कारण लांचिंग की तारीखें लगातार आगे बढ़ रही थी। सरकार से समन्वय की जिम्मेवारी मेरी नहीं थी। इसी नाम पर कुछ और लोग भर्ती हुए थे। आखिर में 12 अप्रैल 2000 लांचिंग की तारीख तय हुई। रास्ता रोकने की हिंदुस्तान ने अथक कोशिश की साम-दाम-दंड-भेद सब चला, मरने-मारने तक की नौबत आई। हिंदुस्तान के साथ दूसरे मीडिया हाउस भी हो गए। लेकिन, हम सभी दीवार की तरह खड़े रहे। गाड़ियों पर हमले हुए। एक बार तो ऐसा हुआ कि मुझे तुरंत दिल्ली से वापस आना पड़ा। राजधानी एक्सप्रेस से उतरा और तारामंडल के पास ही भिड़ंत हो गई। अखंड बिहार में खबर और प्रसार का नेटवर्क शैलेन्द्र दीक्षित जी व रामाज्ञा तिवारी जी ने बस-ट्रेन-कार की यात्रा पूरी कर खड़ा किया। डायरी में पिछले शहर से शहर/पिछले स्टेशन से अगले स्टेशन तक की दूरी, पहुंचने का समय और वहां की विशेषता को नोट किया जाता। रिपोर्टिंग टीम की भर्ती प्रक्रिया का मैं स्थायी सदस्य बन गया। इसी बीच मेरी मदद के बगैर मेरे भाई भुवनेश्वर वात्स्यायन भी प्रभात खबर से दैनिक जागरण आ गए। बाद में, रिश्ते का भेद खुला। तब, थोड़ी चर्चा हुई-विवाद का डर लगा। रास्ता शैलेंद्र दीक्षित जी ने निकाला। बिलकुल किनारे में अर्थ डेस्क बना था। वात्स्यायन वहीं बैठा दिए गए। तय हुआ कि कुछ दिनों तक किसी को पता न चले। मेरे पास तो पहले से मोबाइल था, दैनिक जागरण की बिहार टीम के लिए सुनील गुप्ता जी के निर्देश पर सीरीज के नंबर के मोबाइल सिम कार्ड व हैंडसेट समेत खरीद हम ही लेकर आए। लांचिंग हो गई। सुनील गुप्ता जी, विनोद शुक्ला जी, जे के द्विवेदी जी, आनंद त्रिपाठी जी, शैलेंद्र दीक्षित जी, रामाज्ञा तिवारी जी – सभी मुझ पर अथक भरोसा कर रहे थे। हिंदुस्तान ने मुझे तोड़ने की कोशिश की। डबल सैलरी का आफर दिया। लेकिन, मुझे यह बात ठीक नहीं लगी। वजह जब मैं आज छोड़ हिंदुस्तान जाना चाहता था, तब उसने भर्ती नहीं ली थी। सुनील गुप्ता जी ने विशेष कृपा की। तुरंत पूरी टीम की सैलरी नहीं बढ़ सकती थी। मेरा पेमेंट बढ़ा दिया गया। पर, बढ़ा हुआ पेमेंट सुनील गुप्ता जी के नाम लिखा जाता और इस बात की जानकारी सिर्फ आनंद त्रिपाठी जी, शैलेंद्र दीक्षित जी और सुमित विश्नोई जी को थी। इतना ही नहीं, अखबारी दुनिया में हमेशा संपादकीय से ज्यादा विज्ञापन विभाग को सुविधा मिलने की परंपरा थी। मेरे लिए, यह भी टूटा। भले, विज्ञापन के लोगों को अच्छा नहीं लगा, लेकिन संस्थागत कार्यों से हमें फ्लाइट से जाने-आने और फाइव स्टार होटल तक में ठहरने की मंजूरी मिली। बाद में, तो लाखों के मेरे बिल भी आनंद त्रिपाठी जी और सुनील गुप्ता जी विश्वास के साथ दस्तखत कर देते। आगे के वर्षों में मेरी सैलरी भी अन्य की तुलना में राकेट की रफ्तार से बढ़ी। अब सुनील गुप्ता जी के लिए मैं ज्ञानेश्वर नहीं गोपी बाबू था। हमने भी दैनिक जागरण को अपना पूर्ण देने की कोशिश की। साल 2000 में ही जिस सेनारी गांव में पुलिस जुल्म की रिपोर्टिंग के कारण सबसे पहले दैनिक जागरण की धाक जमी, हाई कोर्ट में हंगामा मच गया, कई पुलिस वाले नप गए, वह रिपोर्ट भी मेरी ही थी। फिर, मियांपुर नरसंहार। सुबह सिर्फ दैनिक जागरण में ही था, वह ब्रेकिंग भी हमारी ही थी। रात को 2 बजे तक हमलोग काम करते और महीने में 7 से 10 दिन तो ऐसे होते कि सुबह अखबार के सेंटर पर चाय पीने के बाद ही आते। प्रतापपुर गोलीकांड मतलब शहाबुद्दीन के घर पुलिस की चढ़ाई वाली घटना में पटना से चल सबसे पहले हम ही पहुंचे थे और फिर शहाबुद्दीन के इंटरव्यू समेत ऐसी रिपोर्टिंग कि अखबार की प्रति 20-20 रुपये में बिकी। अब पूरे बिहार में दैनिक जागरण का डंका बज रहा था। आगे लगातार मेरी एक्सक्लूसिव का डंका बज रहा था।
लालू यादव ने ही सरकारी विज्ञापन के लिए जागरण को किया था सूचीबद्ध
हां, एक बात और। लालू यादव से रिश्ते के नाम पर कुछ और लोग भर्ती थे। पर, ये अपने स्वार्थ में खूब बहाने गढ़ रहे थे। लालू गुस्सा हैं, ये कह कर अखबार का सरकारी विज्ञापन शुरु नहीं होने दिया जा रहा था। पूरा मैनेजमेंट परेशान. लेकिन, इस पचड़े में हम पड़ना नहीं चाहते थे। पर, एक रात मौर्या होटल में सुनील गुप्ता जी के सुइट में पता नहीं क्यों हमने कह दिया, सभी हार गए, तो क्या हम कोशिश करें ? यह कहते हुए डर भी रहा था, लेकिन कह दिया और सुनील गुप्ता जी ने मंजूरी दे दी। फिर, हमने एक बहुत छोटा सा रास्ता तलाशा। आज अखबार में हमारे चीफ रिपोर्टर रहे वीरेंद्र कुमार जी को लालू यादव कितना मानते हैं, यह हमें पता था और वीरेंद्र जी अभी हिंदुस्तान, भागलपुर में थे। वे पटना आना चाहते थे, लालू यादव भी लाना चाहते थे, पर हो नहीं पा रहा था। हमने सुनील गुप्ता जी, आनंद त्रिपाठी जी, शैलेन्द्र दीक्षित जी से मंजूरी ली, अगर हमने करा दिया, तो वीरेंद्र जी को दैनिक जागरण, पटना में भर्ती करना होगा। सहमति मिल गई। इसके बाद वीरेंद्र जी के स्कूटर पर ही पीछे बैठ लालू यादव के पास गया। वे मुझे देखते ही वीरेंद्र जी पर गुस्साए भी, ई बदमशवा को क्यों लेते आए ? फिर वे तुरंत मान भी गए। वीरेंद्र जी ने पूरी बात बताई, लालू जी ने पूछा, धोखा तो नहीं होगा, वीरेंद्र भाई पटना आ जाएंगे न ? हमने कहा हां, इसके बाद वे पूरा मुख्यमंत्री निवास घुमाए, बीच में ही तत्कालीन होम सेक्रेटरी यू एन पंजियार को फोन कर दिया। अगले दिन ही दैनिक जागरण सरकारी विज्ञापन के लिए सूचीबद्ध हो गया। पूरे प्रबंधन का विश्वास हम पर और बढ़ गया। वीरेंद्र जी भर्ती हो गए। सुनील गुप्ता जी ने खुश होकर हमें, आनंद त्रिपाठी जी, शैलेंद्र दीक्षित जी और रामाज्ञा तिवारी जी को बड़ा टीवी सेट गिफ्ट किया और थाईलैंड ट्रिप की अनुमति दे दी। किस्से और हैं, बहुत हैं, फिर कभी लिखेंगे। रांची और सिलीगुड़ी का भी। लेकिन ये सच है, आज मैं जो भी हूं, उसमें दैनिक जागरण का बड़ा योगदान है। 25 वर्ष पूरे होने पर सभी को बधाई।
दैनिक जागरण

Share this post:

खबरें और भी हैं...

लाइव टीवी

लाइव क्रिकट स्कोर

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

Quick Link

© 2023 Reserved | Designed by Best News Portal Development Company - Traffic Tail