➡️मौजूदा समय में रियल एस्टेट कंपनी इंदुमा ग्रुप के एमडी हैं ऋषि सिंह
➡️कभी एक कर्नल के सर्वेंट रूम को बनाया था अपना बसेरा

समाचार विचार/अनूप नारायण सिंह/पटना: मुसीबतें हमारी जिंदगी की एक सच्चाई है। इसके बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन विजयी वही होता है, जो विजयी होने के बारे में सोचता है। आज हम आपको वैसे ही एक युवा उद्यमी के बारे में बता रहे हैं, जो मन को छूने और मस्तिष्क पर छाप छोड़ने वाला है। बिहार के एक छोटे से गांव से निकलर दिल्ली-एनसीआर में लगातार सफलता की सीढ़ी चढ़ रहे उस युवा उद्यमी का नाम है ऋषि सिंह। बैंकिंग, इंश्योरेंस सेक्टर से कैरियर की शुरुआत करने वाले ऋषि सिंह मौजूदा समय में रियल एस्टेट कंपनी इंदुमा ग्रुप के एमडी हैं। आखिर क्यों ऋषि सिंह लाखों युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत बन गए हैं आइए, जानते हैं….
शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा देकर ऋषि ने किया दिल्ली का रुख
ऋषि सिंह ने शुरुआती पढ़ाई-लिखाई बिहार के जमुई जिला के छोटे से गांव बाघाखर से पूरी की। पढ़ने में एक साधारण विद्यार्थी ऋषि बिना हिचक बताते हैं कि वह दो बार लगातार दसवीं की परीक्षा पास नहीं कर पाए। उसके बाद माता-पिता ने कानपुर में रह रही फुआ के पास पढ़ने के लिए भेजा। यहां पर उन्होंने प्रतिस्पर्धा का भान हुआ। इसके बाद ऋषि ने दिन रात एक कर पढ़ाई की और 1998 में दसवीं की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से पास हुए। यहीं से इंटर, बीकॉम और पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद बीएड भी पूरा किया। उसी दौरान यानी 2005 से 2006 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने करीब सवा लाख शिक्षकों की भर्ती निकाली। ऋषि भी उसमें पास हुए और जमुई इंटर कॉलेज में नियुक्ति मिल गई। हालांकि, कुछ बड़ा करने की तमन्ना ने ऋषि को पढ़ाने का काम ज्यादा समय तक नहीं करने दिया। छह महीने बाद ही शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा देकर ऋषि ने दिल्ली का रुख कर लिया।
दिल्ली में आसान नहीं थी संघर्ष और सफलता
ऋषि बताते हैं कि कुछ बड़ा करने की तममन्ना लेकर दिल्ली तो आ गया लेकिन क्या करना था यह पता नहीं था। किसी तरह एक परचित के पास केंद्रीय विहार में कुछ दिन रहा। उसी परचित ने एक सीए के पास चार हजार प्रति माह पर नौकरी लगा दी। लेकिन यहां भी मेरा मन नहीं लगा। फिर मैं मैक्स न्यूयार्क का एडवाइजर बन गया। सीए के यहां से नौकरी छोड़ने और मैक्स का एडवाइजर बनने के बीच का समय मेरे लिए बड़ा ही चैलेंजिंग रहा। परिचत का घर छोड़कर मैं एक कर्नल के सर्वेंट रूम को अपना बसेरा बनाया। वे अच्छे लोग थे। मेरे पास पैसे नहीं थे लेकिन उन्होंने मुझे रहने दिया। मैक्स एडवाइजर बनने के बाद मैं आईसीआईसीआई प्रडूयूशेंयिल जॉइन किया। यहां पर करीब दो साल नौकरी की और सभी मौलिक जरूरतों को पूरा किया।

जेहन को मिली खुद का कारोबार करने की प्रेरणा
ऋषि बताते हैं कि आईसीआईसीआई में नौकरी से मन उबने लगा। उसी दौरान यानी 2008 में नोएडा एक्सटेंशन (ग्रेटर नोएडा वेस्ट) में नए रियल एस्टेट के प्रोजेक्ट लॉन्च होने लगे। मैं नोएडा एक्सटेंशन में अपना घर बुक कराने के लिए आया। वहां पर मैं जिस प्रॉपर्टी कंसलटेंन्ट से मिला उससे मैंने इसके फायदे और चैलेंज के बारे में जाना। मैं सोचा की जब मैं इंश्योरेंस बेच सकता हूं कि तो प्रॉपर्टी क्यों नहीं। हालांकि, इंश्योरेंस से प्रॉपर्टी बेचना काफी चुनौतीपूर्ण था। लेकिन, मैं डटा रहा। शुरुआत के कई महीनों तक एक भी बुकिंग नहीं मिली। फिर जाकर बुकिंग मिली लेकिन तब भी मैं सीधे कंपनी से नहीं जुड़ा था। एक बड़े ब्रोकिंग फर्म को वह बुकिंग देना पड़ा और बदले में मुझे कुछ पैसे मिले। मैने इसके बाद खुद की एक टीम बनाई। फिर काम करते करते अपनी कंपनी बनाई और नए प्रोजेक्ट को अंडर राइट करते चला गया। कारवां बढ़ता गया। आज रियल स्टेट की दुनिया में इंदुमा विश्वास का दूसरा नाम है।















