आज मैं लिखूँगा: युवा साहित्यकार डॉ. अभिषेक ने किया वमठुल्ले बुद्धिजीवियों को एक्सपोज 

वामपंथी
साहेबपुरकमाल
➡️मुसलमानों में भय पैदा कर पिछलग्गू बनाने की नीतियों का भी किया पर्दाफाश
➡️आंखों से काजल चुराने में भी सिद्धहस्त हैं ये तथाकथित बुद्धिजीवी
समाचार विचार/बेगूसराय: बेगूसराय जिले के बलिया प्रखंड क्षेत्र के सदानंदपुर निवासी डॉ. सतीश चंद्र मिश्रा एवं भाजपा नेत्री डॉ. इंदु मिश्रा के पुत्र युवा साहित्यकार डॉ. अभिषेक कुमार किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें उनकी सतत साहित्य साधना के लिए नेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड ने अनंत कृति अवार्ड से भी नवाजा है। डॉ. अभिषेक कुमार अनंत कृति अवार्ड से सम्मानित किए जाने वाले जिले के पहले साहित्यकार हैं। विदित हो कि डॉ. अभिषेक कुमार पेशे से नेत्र चिकित्सक हैं। इन्होंने रस्सा खोल, झुकती पलकों की चीख, कुछ कही कुछ अनकही काव्य संग्रह, मेरी सौ बाल कविताएं, मेरी इक्यावन बाल कविताएं, साहित्यिक मठाधीशों का काला चिट्ठा, व्यंग्य आलोचनात्मक गद्य, पीडोफिलिक नागार्जुन विवादों और साजिशों के बीच, मुक्ताकाश, लघुकथा संग्रह, और कोरोना डायरी इंडिया फ़ाइट्स अगेंस्ट कोविड-19 सहित उन्होंने 12 किताबें लिखी है जिसमें नौ किताबें अब तक प्रकाशित की जा चुकी है। आज मैं लिखूँगा कॉलम के तहत युवा साहित्यकार डॉ. अभिषेक ने वमठुल्ले बुद्धिजीवियों को एक्सपोज किया है। आप भी पढ़िए और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिए।
जिस थाली में खाता है, उसी में  करता  छेद ।
बने देश के गद्दार कुछ, दो टके में ईमान बेच ।।
कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ। सम्पूर्ण देश शोक में डूबा हुआ है। हर हृदय में जज्बातों का ज्वार भाटा उत्पन्न है। क्या पक्ष , क्या विपक्ष, क्या आम जन, क्या हिन्दु, क्या मुस्लिम, हर किसी की केवल एक ही चाहत है कि भारत सरकार आतंकवादी और आतंकवाद की हिमायत करने वाला देश पाकिस्तान से बदला ले। लेकिन एक तबका ऐसा भी है जो देश की इस शोक संतप्त स्थिति में भी अपने लिए अर्थात देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रति नफरती विद्वेष को तुष्ट करने के अवसर ढूंढ रहे हैं। यह तबका खुद को प्रगतिशील तो कहता है लेकिन वास्तव में यही मानसिक पिछड़ेपन का सबसे बड़ा हिमायती है। युवा ब्रेन को ट्रैप कर बरग़लाने का कार्य करता है। यही मुस्लिम भाइयों में फ़ालतू का डर पैदा करता है ताकी मुस्लिम भाई इसका पिछलग्गू बने रहें। सेकुलेरिज्म का मुखौटा ओढ़े यही सबसे बड़ा प्रतिक्रियावादी है। यही सबसे बड़ा जातिवादी है। ये वही हैं, जो नारीवाद की वकालत कर नारी देह को खेल कर जी बहलाने वाला खिलौना समझते हैं। आज अगर सामाजिक साम्य की वकालत करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी के जनाधार में निर्णायक क्षरण आयी है तो इसमें एक प्रभावी कारण इनका अनर्गल प्रलाप भी है।
कर्तव्य भूला दिये वो, चाहिए केवल देश में अधिकार ।
टूट पूँजिये कम्युनिस्ट ने,  किया  पार्टी  का  बंटाधार ।।
मैं इन्हें वामपंथी तो कतई नहीं मानूंगा। ये वामपंथ का लबादा ओढ़े द्वैत प्रकृति के परम अवसरवादी वमठुल्ले बुद्धिजीवी हैं। पहले भी यह अपने प्रलाप से समाज को बांटने और बरग़लाने की कोशिश करते थे और कुछ हद तक कामयाब भी रहते थे। लेकिन अब जमाना सोशल मीडिया का है। सूचनाओं के सम्प्रेषन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। लोगों की समझ बढ़ी है। लोग सही गलत में फर्क करने की कला को कुछ हद तक सीख गये हैं। सूचनाओं के सुलभ सम्प्रेषन ने लोगों में भावनात्मक परिवर्तन भी उत्पन्न किये हैं। डिजिटलाइजेशन ने ग्लोबलाइजेशन की परिकल्पना में पंख लगा दिया है लेकिन ये वमठुल्ले बुद्धिजीवियों को अब भी यही लगता है कि लोग इनके अनर्गल प्रलाप पर यकीन कर इनके जाल में आसानी से फंस जाएंगे। तभी तो ये मोदी विरोध के जूनून में इस कदर उन्मादित हो जाते हैं कि इन्हें यह ही पता नहीं चलता की कब मोदी के खिलाफ लिखते – लिखते ये देश और उसकी नीतियों के खिलाफ लिखने – बोलने लगते हैं। ऐसा कर ये आम जनों की भावना से खिलवाड़ करते हैं और आम जनों के हृदय में वामविचारधारा के प्रति उत्पन्न संशय को ये अपनी इन्हीं हरकतों से तुष्ट करते हैं।
घात लगाए बैठा है, राजनीतिक  बिसून  बिलाड़।
जन गण मन अब जागो, पहचानो असली गद्दार ।।
उन वमठुल्ले बुद्धिजीवियों को मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गाँधी, अखिलेश यादव, ओवैसी, रेवंत रेड्डी, तेजस्वी यादव सरीखे विपक्षी नेताओं से सीख लेने की जरूरत है, जो मोदी के धुर विरोधी होते हुए भी इस शोक काल में सरकार और देश नीतियों के प्रति समर्थन व्यक्त कर आमजन की भावनाओं को सम्मान देने का काम किया। लेकिन वमठुल्ले बुद्धिजीवियों को इससे मतलब कहाँ … ये तो नफरत के सौदागर बनकर अपनी महानता साबित करने में एड़ी चोटी का जोड़ लगा रहे हैं। ये खाक बुद्धिजीवी रहेंगे। इन्हें तो प्रतिरोध और अंधविरोध में अंतर तक पता नहीं। ये इस कदर हृदयहिन हो चुके हैं कि ये मानवता और इंसानियत के आधारभुत सिद्धांतों के प्रति भी नास्तिकता प्रदर्शित करने लगे हैं।

डॉ. अभिषेक

मानवता को भुला दिया, इंसानियत बिखरी आज।
पानी   पानी   हो   गया,  मानव   सभ्य  समाज ।।
मोदी विरोध में ये इस कदर उन्मादित हो गये हैं कि भारत के द्वारा अतीत में किये गये सर्जिकल स्ट्राईक की खिल्ली आज कौआ मार स्ट्राईक कह उड़ा रहे हैं। भारत ने 1960 में अमेरिका के दवाब में हुए सिंधु जल समझौता को रद्द किया तो पाकिस्तान के पेट में मरोड़ उत्पन्न हुआ मगर दस्त इन वमठुल्ले बुद्धिजीवियों को होने लगा है। ऐसा लगता है कि जैसे सिंधु जल के बिना इन्हीं लोगों की खेतीबारी सुख रही है। फ़सल नष्ट हो रही है।
निहत्थे बेकसूरों को, जो उतारे मौत के घाट।
मानवता का दुश्मन बड़ा , कुछ क्योँ देते साथ ।।
25 इंसानों की लाशें धर्म पूछकर गिरा दी गयी। एक हुसैन भी आतंकियों से लोहा लेते हुए मारा गया। पुरा देश हुसैन की शहादत को नमन करता है। मैंने भी हुसैन को शब्दांजलि दी एक दोहा लिखकर –
दिल में भरा है गुस्सा,  मातम  मना  रही  है  नैन।
गर्व है तेरी शहादत पर, भारत माँ का लाल हुसैन ।।
अब देखिए हुसैन की मौत पर इन वमठल्लों की राजनीति! ये यह साबित करने पर तुले हैं कि हुसैन की मौत का गम भारत के आम लोगों को, स्पेशली हिन्दुओं को है ही नहीं जबकि ये मातम इस तरह से मना रहे हैं, जैसे हुसैन के रूप में उनका अपना सगा बेटा कश्मीर में मरा हो और वो पच्चीस लोग गैर थे। आज जब देश के मुस्लिम भाई देश और सरकार की नीतियों के समर्थन में कश्मीर से लेकर असम तक, भोपाल से लेकर गुजरात तक, जामा मस्जिद से लेकर छोटे स्तर के मस्जिदों में प्रदर्शन कर रहे हैं तो इन वमठुल्ले बुद्धिजीवियों को अपच हो रहा है। यह ये साबित करने में लगे हैं कि देश के हिन्दुओं के हृदय में पाकिस्तान के खिलाफ नहीं बल्कि देश के मुसलमानों के विरुद्ध नफ़रत पैदा हो रहा है। सामान्य मनोवैज्ञानिकी की बात है, आतंकियों ने इसलिए धर्म पूछ कर गोली दागी ताकि देश में हिन्दु – मुस्लिम दोनों में अलगाव अपने चरम पर पहुँच जाय। जगह – जगह दंगे भड़के, सरकार अस्थिर हो और भारत का लोकतंत्र कमजोर हो।
अंधे बनो नहीं उन्माद में, आतंकी की चाल  पहचान ।
हिन्दु – मुस्लिम में बंटो नहीं, बची रहेगी देश की शान ।।
आतंकी अब तक तो इस मनसूबे में नाकामयाब रहे क्योँकि देश के हिन्दु – मुस्लिम दोनों समुदाय ने इस मसले पर बेहद परिपक्वता दिखाते हुए देश और देश की नीतियों के प्रति एकता प्रदर्शित किया। यह बात इन वमठुल्लों को अपच हो गयी और ये विष वमन करने लगे।
उबल रहा सम्पूर्ण देश, आतंकियों अब तेरी  खैर नहीं।
देश के गद्दारों को मारो गोली, मुस्लिम भाइयों से बैर नहीं ।।
हद तो तब हो गई जब देश के एक नामी गिरामी पत्रकार ने सोशल मीडिया पर मारे हुए लोगों का एक फर्जी लिस्ट जारी किया और ये बुद्धिजीवी बिना तथ्यों को जाने – समझे धराघर उस लिस्ट को शेयर करने लगे। हृदय विदारक है लेखकों की जमात में इस प्रकार की मानसिक जड़ता को देखना। सच कहूँ तो शर्म आती है खुद को इस जमात में शामिल देखकर।
रोटी अपनी सेंक रहे, जलती चिता को देख।
स्वयंभू बुद्धिजीवी कुछ यहाँ, लिखते भद्दे भद्दे आलेख।।
इनकी चरम मूर्खता का दर्शन तब हुआ, जब इन्होने मोदी जी के द्वारा मधुबनी की सभा में अंग्रेजी में दिये गये सम्बोधन को मुद्दा बनाकर धराधर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगे की मोदी ने अंग्रेजी में क्योँ बोला ? अरे मूर्खाधिराजों आपका यह अनर्गल प्रलाप है। मोदी विरोध में आप शायद यह भूल रहे कि अंग्रेजी में भाषण इसलिए दिया गया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख की सम्प्रेषनीयता विदेशों में आसानी से हो सके। मोदी विरोध कीजिए ज़नाब, लेकिन मोदी विरोध में इस हद तक नहीं गिर जाइये कि कल को खुद से भी नजरें मिलाने के काबिल न रहें।
दरिद्र है वह नहीं, जो धन वैभव से हीन।
दरिद्रता ने उसको घेरा, जो है भाव से दीन ।।
अंत में मैं केवल इतना ही कहूँगा कि हमारे प्यारे हिन्दु और मुस्लिम भाइयों। आप इन वमठुल्लों के चक्कर में नहीं पड़ें। इस शोक काल में आप आतंकियों और पाकिस्तानियों के विरुद्ध जिस चट्टानी एकता का परिचय देते हुए एक साथ खड़े हैं, वह काबिले तारीफ़ है। यही एकता बनाये रखें। हम दुश्मन को मुँहतोड़ जवाब देंगे। साथ ही साथ इन वमठुल्ले बुद्धिजीवियों से भी सतर्क रहने की जरूरत है वरना ये आपके आँख से काजल तक चुरा लेंगे
रहना होगा जागरूक, दुश्मन बड़ा शैतान ।
भारतवासी एक रहेंगे,  सेफ  रहेगी  जान ।।
अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद
डॉ. अभिषेक

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