🎯निगरानी के छापे से सुर्खियां बटोर रहे थानेदार ब्रजेश के हिस्सेदारों पर भी हो कार्रवाई
🎯पद्म विभूषण से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर को जरूर पढ़िए
समाचार विचार/बेगूसराय: बिहार में सदन से लेकर सड़क तक भ्रष्टाचार के ज्वलंत सवाल पर लंबी चौड़ी हांकने वाले जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को तो सूबे के सीएम आइना दिखा रहे हैं। सीएम नीतीश कुमार की चरण वंदना में संलिप्त घनघोर भ्रष्टाचारी भले ही उनकी हरकत की वजह से उन्हें मानसिक रोगी साबित करने पर आमादा हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बिहार का हर सरकारी कार्यालय भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगा रहा है। अंचल से लेकर थाना तक भ्रष्टाचार का आलम यह है कि अगर आप सिक्कों की खनक पर संबंधित अधिकारियों को नचाने में सक्षम हैं तो आपके विपक्षी के द्वारा मुख्यमंत्री के जनता दरबार में लाख आवेदन दिए जाने के बावजूद आप जैसा चाहेंगे, वैसा ही होगा। अब सरकार के कारिंदे यह चर्चा सरेआम कर रहे हैं कि एनएच पर अवस्थित थानों की बागडोर संभालने के लिए उन्होंने तीस से चालीस लाख रुपया दिया है। पिछले बार ही सीओ के तबादले पर रोक लगाने की शासकीय आदेश से जनमानस में यह मैसेज स्पष्ट तौर पर गया है कि बिना रुपए पैसे के लेन देन के म्यूटेशन या अन्य अंचल संबंधित कार्यों का निष्पादन संभव नहीं रह गया है।
भ्रष्टाचार की गंगोत्री के नाले का एक कीड़ा है थाना प्रभारी ब्रजेश कुमार
पत्रकारिता पेशे में कई दशकों तक सजग रहने वाले पत्रकारों ने हैरत जताते हुए कहा कि बांका जिले के शंभूगंज थाने में पदस्थापित थाना प्रभारी ब्रजेश कुमार के बेगूसराय स्थित आवास पर निगरानी के द्वारा की गई छापेमारी के बाद पत्रकारिता के बंदरों के उछल कूद को देखकर हैरत होती है। ये लोग अब केवल सूचना के वाहक रह गए हैं। ऐसी सूचनाएं तो दशकों से प्रकाशित और प्रसारित हो रही हैं। फिर भी, भ्रष्टाचारियों पर लगाम क्यों नहीं लग रहा है? थाना से सबसे अधिक जुड़ाव इन पत्रकारों का ही रहता आ रहा है। यह जानते हुए भी कि थानेदार अवैध उगाही में लगा हुआ है, ये लोग उसके महिमा मंडन में लगे रहते हैं। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर इनके द्वारा दी गई विज्ञापन की राशि इन्हें बांध देती है। प्रबंधन का दुम हिलाने वाले रूटीन वर्क में तल्लीन इन पत्रकारों को विमर्श करने का समय मिलता कब है? दरअसल, लोकतंत्र के चारों स्तंभों में भ्रष्टाचार की गंगोत्री इतनी तेज रफ्तार से बह रही है कि इनलागों में येन केन प्रकारेण अकूत धनार्जन की होड़ लगी है। निगरानी की जद में आया ब्रजेश कुमार तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री के नाले का एक कीड़ा है। गौरतलब हो कि बेगूसराय के चकिया थाना क्षेत्र के अमरपुर निवासी ब्रजेश कुमार फिलहाल बांका जिला के शंभूगंज थाने में थाना प्रभारी के रूप में कार्यरत है। उसके बेगूसराय स्थित नागदह मोहल्ले में निगरानी की कार्रवाई ने आज खूब सुर्खियां बटोरियां हैं। हालांकि, निगरानी अगर पारदर्शिता के साथ काम करे तो तकरीबन हर थाने में तैनात थानाध्यक्षों की कुंडली खंगाली जा सकती है।
अब पद्म विभूषण से सम्मानित सुरेंद्र किशोर को गौर से पढ़िए
मैं 1963 तक स्कूल का छात्र था और 1967 तक काॅलेज का। तब तक स्कूल-कालेजों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती थी और अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर कदारचारमुक्त परीक्षाएं भी होती थीं। उस समय तक न तो कोचिंग संस्थानों का बोलबाला था और न ही प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक होते थे।साठ के दशक में प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग काॅलेजों में दाखिले का कट ऑफ माक्र्स मात्र 55 प्रतिशत था। मेडिकल का शायद उससे भी कम। मार्क्स के आधार पर ही दाखिला होता था। वैसे मेडिकल के बारे में पक्का नहीं हूं। पर, धीरे- धीरे सामान्य शिक्षा-परीक्षाओं में कदाचार बढ़ने लगा। बिहार में 1967 से बड़े पैमाने पर कदाचार की शुरूआत हुई। सन 1971 आते-आते कदाचार पराकाष्ठा पर पहुंचा। मुख्य मंत्री केदार पांडे ने कुछ कत्र्तव्यनिष्ठ अफसरों के सहारे कदाचार पूर्णतः रुकवा दिया। पर बाद में फिर शुरू हो गया। अब तो हर तरह की परीक्षाओं में सर्वत्र कदाचार ही नियम है और सदाचार अपवाद।
थानेदारों की छोड़िए न, अब किसी से नहीं छिपा है वीसी की बहाली में रुपए का खेल
बिहार में हाई स्कूलों और काॅलेजों के सरकारीकरण के बाद से शिक्षा-परीक्षा में भारी गिरावट शुरू हो गयी थी। क्योंकि निजी प्रबंध समितियों वाला अनुशासन व भ्रष्टाचारमुक्तता का लोप हो गया। नीतीश शासनकाल में हड़बड़ी में माक्र्स के आधार प्राथमिक शिक्षकों की बहाली ने गिरावट को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया। हालांकि 1976 में भी प्राथमिक शिक्षकों की बड़े पैमाने पर बहाली माक्र्स के आधार पर ही हुई थी। पर तब तक स्कूल-काॅलेजों की शिक्षा ध्वस्त नहीं हुई थी। उसके बाद जिस अनुपात में राजनीति-प्रशासन में भ्रष्टाचार फैला और बढ़ा,उसी अनुपात में शैक्षणिक संस्थाओं में भी गिरावट। अब तो अपवादों को छोंड़कर लाखों रुपए लेकर वी.सी.तक की बहाली होती है। अपवादों को छोड़कर सांसद-विधायक फंड की कमीशनखोरी ने प्रशासन पर जन प्रतिनिधियों की नैतिक धाक पूरी तरह समाप्त कर दी है। राज्यपाल देवानंद कुंवर जब बिहार विधान मंडल को संबोंधित करने गये थे तो कांग्रेस विधायक ज्योति ने खड़ा होकर तेज आवाज ने राज्यपाल से पूछा था–‘‘वी.सी.की बहाली में आजकल आपका क्या रेट चल रहा है ?’’ मोदी सरकार द्वारा बहाल कुछ राज्यपालों के कार्यकाल में भी इस मामले में पैसे का खेल चला।
(याद रहे कि हमलोग प्रेस गैलरी में बैठकर ज्योति की वह बेबाक बात सुन रहे थे।)
सर्वव्यापी, सर्व शक्तिमान और सर्वज्ञ है शासकीय भ्रष्टाचारी
जब मैं बी.एससी.पार्ट वन का छात्र था,उस समय का मेरा रुममेट साइंस विषयों की प्रैक्टिकल परीक्षाओं के लिए‘‘मनी फाॅर माक्र्स’’ का धंधा करता था। मेडिकल-इंजीनियरिंग कालेजों में दाखिले के इच्छुक छात्रों से 250 रुपये लेकर कुछ विज्ञान शिक्षकों तक पहुंचाता था। शिक्षक पैसे लेकर प्रैक्टिकल के कुल 20 अंकों में से 18 या 19 अंक दे देते थे। एक दिन उस दलाल छात्र ने मुझसे कहा कि तुम्हारे लिए पैसे में कुछ छूट करवा दूंगा।कहो तो फिजिक्स-केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल में नंबर बढ़ाने के लिए तुम्हारे बारे में भी बात करूं। मैंने कहा कि मुझे जीवन में कभी कोई सरकारी नौकरी नहीं करनी है। मुझे राजनीति में जाना है। इसलिए मुझे वह सब नहीं चाहिए। नब्बे के दशक में उत्तर बिहार का वह दलाल लड़का, जो तब तक बड़का हो चुका था,पटना के बुद्ध मार्ग पर एक दिन अचानक मिल गया।मैंने पूछा–‘‘…….न्दर, क्या कर रह हो ?’’ उसने कहा कि मैं हाई स्कूल में शिक्षक हूं।’’ 20 में से नाजायज तरीके से 18-19 अंक दिलवाने की जानकारी जब सरकार तक पहुंची थी तो मेडिकल में दाखिले के लिए प्रतियांेगिता परीक्षाएं होने लगी थीं। कुछ साल तक ठीक रहा। पर,अब अब ? आप देख ही रहे हैं। आज लीक करने वालों को सही मुकाम तक पहुंचाना इस सिस्टम में काफी मुश्किल काम है। बल्कि असंभव। क्योंकि यहां की दो -तिहाई से भी अधिक ‘‘व्यवस्था’’ सड़ चुकी है।अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर सब पैसे के पीछे अंध दौड़ में शामिल हैं। अत्यंत थोड़े से अपवादों को छोड़कर जब भीषण भ्रष्टाचार राजनीति,सत्ता,प्रशासन,शिक्षा आदि से बने सिस्टम के अंग- अंग में है,हर जगह है,सर्वव्यापी और सर्व शक्तिशाली है तो सिर्फ प्रतियोगी प्रतियोगिताओं में ही आप सदाचार की तलाश क्यों कर रहे हो ? कैसे कर रहे हैं ?वैसे करते रहिए।पर मिलेगा ? मिलेगा भी ? कभी नहीं।
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Author: समाचार विचार
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