🎯बुधवार की सुबह प्राण त्यागने की खबर फैलते ही पसर गया मातमी सन्नाटा
🎯राजद सुप्रीमो लालू यादव को स्वर्ण मुकुट पहनाकर सूबे में चर्चित हुए थे दिवंगत रतन सिंह
समाचार विचार/बेगूसराय: बुधवार की अहले सुबह बेगूसराय की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले प्रभावी व्यक्तित्व के धनी जिला परिषद के पूर्व चेयरमैन रतन सिंह के निधन की खबर फैलते ही लोग स्तब्ध रह गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार हृदय गति रुकने की वजह से उनका असामयिक निधन हो गया। वे पिछले ढ़ाई दशकों से बेगूसराय जिले के चर्चित शख्सियत रहे। अपने बाहुबल, धनबल, जनबल और सौम्य विचार व्यवहार से उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक साम्राज्य खड़ी कर दी थी। वर्ष 2001 में वे बेगूसराय जिला परिषद के अध्यक्ष बने और बाद में राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए। आज की तारीख में भी जिला परिषद में उनके काम और प्रभाव का दबदबा अभी तक कायम है। पिछले 22 बरसों से जिला परिषद पर उनका प्रभाव बरकरार रहा है। उनके निधन से जिले को राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अत्यधिक नुकसान हुआ है। वे वत्स गोत्रीय जलेबार सेवा समिति और टैंकर एसोसिएशन के भी अध्यक्ष थे।
रतन सिंह के निधन से संभव नहीं है अपूरणीय क्षति की भरपाई
रतन सिंह को बेगूसराय जिला परिषद का चाणक्य भी कहा जाता था। वे 2000 से 2005 तक बेगूसराय जिला परिषद के अध्यक्ष रहे थे। उसके बाद 2005 से 2010 तक उनकी धर्मपत्नी वीणा देवी जिला परिषद के अध्यक्ष के रूप में काबिज रही। बेगूसराय में यह धारणा आम है कि जिला परिषद के अध्यक्ष पद पर कोई भी निर्वाचित होता था लेकिन सत्ता की बागडोर रतन सिंह के हाथों में ही रहती थी। रतन सिंह का राजनीतिक संबंध भले ही राष्ट्रीय जनता दल से रहा हो लेकिन उनकी सभी राजनीतिक दलों पर समान पकड़ था। अपने दामाद रजनीश कुमार को दो-दो बार विधान परिषद का सदस्य बनाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था। नब्बे के दशक में उनकी गिनती बिहार के बाहुबलियों में होती थी। उत्तर बिहार की राजनीति में इनके प्रभाव की कहानी आज भी लोग कहते नजर आते हैं। बरौनी प्रखंड के तिलरथ गांव में जन्म लिए रतन सिंह की शिक्षा दीक्षा यहीं से हुई और इसी क्षेत्र से उन्होंने राजनीति की भी शुरुआत की थी। उनकी पहचान खेल प्रेमी और रंगकर्मी के रूप में थी। क्षेत्र के निर्धन और असहाय लोगों के लिए वे किसी संजीवनी से कम नहीं थे। ऐसा कहा जाता जाता है कि परोपकारी प्रवृति के धनी रतन सिंह के दरबार से कोई भी खाली हाथ लौटकर नहीं जाता था। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज सुबह उनके निधन की खबर फैलते ही लोगों का हुजूम उनके पैतृक आवास पर उमड़ पड़ा है। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर यूजर्स उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं। निश्चित रूप से रतन सिंह का असामयिक निधन बेगूसराय की अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई अब संभव नहीं है।
राजद सुप्रीमो लालू यादव को स्वर्ण मुकुट पहनाकर सूबे में चर्चित हुए थे दिवंगत रतन सिंह
बिहार के पहले सीएम श्री कृष्ण सिन्हा की जयंती के अवसर पर कांग्रेस के पार्टी मुख्यालय सदाकत आश्रम में कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने लालू यादव को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। जब लालू यादव कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे तो बीजेपी के एमएलसी रहे रजनीश कुमार के ससुर रतन सिंह ने लालू को सोने का मुकुट पहनाकर राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी थी। राजद सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को रतन सिंह ने गले लगाया और सोने का मुकुट पहनाकर उनका भव्य स्वागत किया था। जिस कालखंड में रतन सिंह राजनीति में आए थे, उस समय मंत्री श्रीनारायण यादव आरजेडी के जिला में गार्जियन कहे जाते थे। दूसरी तरफ भोला सिंह थे, जो निर्दलीय से शुरू होकर सीपीआई, कांग्रेस, आरजेडी के रास्ते बीजेपी में पहुंच चुके थे। दोनों का समर्थन रतन सिंह को मिला।राजनीति में आने से पहले सूबे के अन्य बाहुबली नेताओं की तरह उन पर भी कई तरह के केस-मुकदमे हुए और तमाम तरह के आरोप भी लगे जो कोर्ट में साबित नहीं हो सके।
बड़ी रोचक रही है रतन सिंह और अशोक सम्राट के जुड़ाव और अलगाव की कहानी
डॉन अशोक सम्राट से रतन सिंह का जुड़ाव और फिर कथित अलगाव की कहानी काफी रोचक रही है। रतन सिंह के पांव कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही अपराध जगत की ओर बहक गये थे। पढ़ाई-लिखाई के बाद बरौनी रिफाइनरी के बहुचर्चित 10 नम्बर गेट पर उन्होंने पेट्रोलियम का अपना कारोबार जमा रखा था। इस 10 नम्बर गेट के बारे में आम धारणा थी कि वहां पेट्रोल का गोरखधंधा तो होते ही हैं, अपराधी भी पैदा किये जाते हैं। करीब से जानने वालों के मुताबिक रतन सिंह की दबंगता को वहीं मजबूती मिली। बरौनी के अशोक सम्राट का तब अंतर्राज्यीय आतंक था। शोकहारा (बरौनी) में उसकी अजीज दोस्त से जानी दुश्मन बने रामविलास चौधरी उर्फ मुखिया के साथ खूनी जंग छिड़ी थी।1986 में तेघड़ा प्रखंड के दुलारपुर गांव में रतन सिंह की एक बारात में अशोक सम्राट से मुलाकात हुई। रतन सिंह के मुताबिक रामविलास चौधरी उर्फ मुखिया से लड़ाई में उसने उनसे मदद मांगी और वह उसके साथ हो गये। अशोक सम्राट के साथ मिनी नरेश भी था। दोनों ने मुजफ्फरपुर में तो कोहराम मचा ही रखा था, 1988 में गोरखपुर में रेलवे की ठेकेदारी पर गणेश शंकर पांडेय और हरिशंकर तिवारी के वर्चस्व को भी तोड़ दिया था। एक तरह से रेलवे पर गोरखपुर की रंगदारी खत्म कर बिहार की रंगदारी कायम कर दी थी। उसी समय से ठेकेदारी में 10 प्रतिशत की रंगदारी की परंपरा शुरू हो गयी थी।
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Author: समाचार विचार
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