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बीते हुए लम्हे: जब श्री बाबू ने नहीं किया था अपने ही गठबंधन के उम्मीदवार सूरजभान का समर्थन

➡️1980 में भारतीय लोकदल के टिकट पर पहली बार चुनाव जीते थे दिवंगत श्री नारायण यादव

➡️आज राजकीय सम्मान के साथ मुंगेर घाट में संपन्न होगा अंत्येष्टि कार्यक्रम

समाचार विचार/बेगूसराय: राजद के भीष्म पितामह और बेगूसराय राजद के गार्जियन के उपनाम से मशहूर पूर्व मंत्री श्री नारायण यादव अनंत लोक में विलीन हो गए। उनके निधन के उपरांत जिले भर में शोक की लहर फैल गई। जिले के वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार महेश भारती ने अपने एफबी वॉल पर दिवंगत श्री नारायण यादव से जुड़ी स्मृतियों को साझा करते हुए लिखा है कि पूर्व मंत्री श्री बाबू नहीं रहे। वे बेगूसराय जिले के बलिया साहेबपुर कमाल विधानसभा क्षेत्र से छह बार विधायक चुने गए थे। वे छात्र युवा काल में सोशलिस्ट पार्टी की धारा की राजनीति में सक्रिय हुए थे। जहां से वे 1977 में जनता पार्टी के कार्यकर्ता बने और फिर भारतीय लोकदल से दमकिपा होते जनता दल और राजद तक की उनकी राजनीतिक यात्रा रही‌।
1980 में भारतीय लोकदल के टिकट पर पहली बार चुनाव जीते थे दिवंगत श्री नारायण यादव
वर्ष 1980 में पहली बार भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीते और उन्हें भारतीय लोकदल का टिकट दिलाने वाले पूर्व सांसद राम जीवन सिंह रहे थे, जो उस समय बलिया लोकसभा क्षेत्र से संसदीय चुनाव हारकर चरण सिंह की अगुवाई वाले लोकदल की राजनीति के बिहार में शीर्ष पर थे। श्री नारायण यादव तब से बलिया की राजनीति में धूरी बने रहे। वर्ष 1984 में मेरी पहली मुलाकात उनसे तब हुई थी, जब वे बलिया लोकसभा चुनाव के दलित मजदूर किसान पार्टी के प्रत्याशी रामशरण यादव के चुनाव प्रचार करने वे मंझौल आए थे। उस समय दमकिपा के प्रदेश अध्यक्ष राम जीवन सिंह ही थे, जिनका घर मंझौल था। उनका ओजस्वी भाषण सुना था और सोशलिस्ट कार्यकर्ता की तरह एक बेंच पर बैठकर हमलोगों की बातचीत हुई थी जबकि, तब वे विधायक थे। वर्ष 1985 में वे इंदिरा गांधी की मौत के बाद उपजे सहानुभूति लहर में कांग्रेस पार्टी के शमसू जोहा से चुनाव हार गए थे। लेकिन,वे दमकिपा से होते लोकदल च में सक्रिय रहे। बाद में जनता दल बनने के बाद वे उसमें शामिल हो गए। वर्ष 1990 में बेगूसराय जिले में कांग्रेस के खिलाफ बने सीपीआई जनता दल के गठबंधन में वे बलिया से दूसरी बार विधायक चुने गए। बाद में वे लालू प्रसाद के मंत्रिमंडल में मंत्री बने। तब से लगातार लालू राबड़ी मंत्रिमंडल में वे मंत्री पद को सुशोभित करते रहे। वे 1995 में जद के और 2000 में राजद से विधायक बने। कार्यकर्ताओं में वे मंत्री जी या राजद के गार्जियन के नाम से ही प्रसिद्ध थे। उन्होंने जनता दल में विभाजन के बाद लालू प्रसाद की अगुवाई में बने राजद का बेगूसराय जिले में मोर्चा थामे रखा और वर्ष 2005 तक लगातार विधायक रहे। लेकिन 2005 में वे जदयू के जमशेद अशरफ और वर्ष 2010 में परवीन अमानुल्लाह से चुनाव हार गए।  लेकिन, परवीन अमानुल्लाह के विधानसभा से इस्तीफा के बाद हुए उपचुनाव में वे पांचवीं बार फिर जीत गए। उन्होंने 2015 का विधानसभा चुनाव भी जीता। वर्ष 2020 में उन्होंने अपने पुत्र ललन यादव को अपना उत्तराधिकारी चुनते हुए विधानसभा का टिकट दिलाकर चुनाव जितवाया।

श्री बाबू

जब श्री बाबू ने नहीं किया था अपने ही गठबंधन के उम्मीदवार सूरजभान का समर्थन
श्री नारायण जी सोशलिस्ट थे। सिद्धांत के कार्यकर्ता थे और सामाजिक न्याय के प्रति वफादार थे। हमेशा अपराध के विरोध में रहे और 2004 में राजद में रहते हुए भी राजद लोजपा गठबंधन के आपराधिक छवि के उम्मीदवार सूरजभान सिंह का समर्थन नहीं किया और मंच भी साझा नहीं किया। उनमें अनेक खूबियां थी और वे कार्यकर्ता पोषक थे। बलिया क्षेत्र के एक लंबे समय तक प्रतिनिधि रहते उन्होंने जिले की राजनीति को भी प्रभावित किया।
पूर्व विधायक राजेंद्र राजन ने भी बीते हुए लम्हों की कसक को शब्दों से किया जीवंत
विनम्र हार्दिक श्रद्धांजलि, दु:ख है, संवेदनशील एवं जुझारू समाजवादी नेता श्री बाबू (श्रीनारायण यादव) गुजर गए। एक जिले का रहने के कारण प्रखर समाजवादी नेता, विधायक और मंत्री रहे श्रीनारायण यादव जी से समीपता थी। इनसे परिचय तब हुआ था, जब ये विधायक नहीं थे। लोक सभा का चुनाव था। कम्युनिस्ट नेता सूरज दा उम्मीदवार थे। साहेबपुरकमाल क्षेत्र में कम्युनिस्ट पार्टी नहीं के बराबर थी। मैं उस विधान सभा क्षेत्र का पार्टी की ओर से प्रभारी था। सूरज दा के साथ उनसे मिलने गया। उनकी पार्टी का उम्मीदवार नहीं था। कांग्रेस के मुकाबले उन्होंने साथ देने की घोषणा की। राज्यव्यापी मोर्चा नहीं था। फिर भी आगे बढकर उन्होंने कमान हाथ में ले लेने की घोषणा की। कुरहा हाट पर चुनाव दफ्तर खुलवाया। वहां किसी विपक्षी ने इसका विरोध किया। श्रीनारायण यादव ने इसे चुनौती माना और हनुमान की तरह दफ्तर के छत पर फलांग कर पहुंच गए। उसके झंडा को हटा दिया और लाल झंडा फहरा दिया। नीचे आकर सूरज दा से कहा ,अब आप निश्चिंत होकर शेष क्षेत्रों की चिंता करें। तन, मन और धन से यहां हम संभाल लेंगे। यही हुआ, सूरज दा वहां से बढिया वोट पाकर जीते।
व्यक्तिगत संबंधों पर कभी हावी नहीं होने दी राजनीति
राजेंद्र राजन कहते हैं कि इसके बाद 1990 में विधानसभा का चुनाव आया। वे जनता पार्टी से बलिया के उम्मीदवार बने और मैं कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से  मटिहानी क्षेत्र का। राज्य स्तर पर संयुक्त मोर्चा नहीं था। लेकिन सूरज दा, श्रीनारायण यादव और रामजीवन बाबू ने स्थानीय स्तर पर तालमेल कायम किया। चुनाव परिणाम अनुकूल हुआ। सभी क्षेत्रों से तालमेल के ही  उम्मीदवार जीत गए। कांग्रेस गोल। बलिया और मटिहानी सीमावर्ती क्षेत्र है। हम दोनों ने एक दूसरे के क्षेत्र में सहयोग किया था। संबंध गाढा हो गया। वे मंत्री बनाए गए लेकिन अहंकार शून्य रहकर मेरे आवास पर चले आते थे। एक बार बीमार पड़ा तो एक्यूप्रेशर करनेवाले को साथ लेकर आए और रोजाना खोज खबर लेते रहे।
अग्नि परीक्षा के कालखंड में भी प्रखरता के साथ डटे रहे थे श्रीनारायण यादव
जब चर्चित, दबंग आईएएस के .के. पाठक, एसडीओ रामेश्वर सिंह, आईएएस, डीएम, सुधीर कुमार ,आईएएस ,डीडीसी और एम.के. झा, आईपीएस,एसपी के साथ मंत्रणा कर    बागडोभ,सिंहपुर एवं बलहपुर के गंगा कटाव से विस्थापित हुए सैकड़ों परिवारों को, जिसे हमने एक भूस्वामी की जमीन पर पुनर्वासित कराया था, को दल -बल के साथ उजाड़ना आरंभ किया तो जनबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच मैंने विरोध किया। उजाड़ने से रोक दिया। के के पाठक ने लाठीचार्ज करबा दिया,  प्रहार से बचाने के लिए सैकड़ों औरतों और मर्दों ने मुझे घेर लिया। पथराव आरंभ हो गया। मुझे एसडीओ पाठक ने गिरफ्तार कर अपने जीप पर बैठा नगर थाने में पुलिस के हवाले कर दिया। सूरज दा एमपी थे तो श्रीनारायण यादव मंत्री। एक दिल्ली में बेचैन तो दूसरे पटना में। शत्रुघ्न बाबू और बासुदेव बाबू एम एल सी थे। सभी रिहाई की कोशिश में दिन -रात एक किए हुए थे। थाने का जनता ने रामेश्वर दा और देवकी दा के नेतृत्व में तीन दिनों तक घेराव करके नियंत्रण में रखा। लेकिन के के पाठक के जुबानी आदेश का प्रभाव था कि रिहाई नहीं हो पा रही थी। सूरज दा ने मंत्री पद की परवाह नहीं रखते हुए श्री बाबू ने कहा; मुख्यमंत्री लालू प्रसाद जी से मैने कह दिया है, राजन जी की  बिना शर्त रिहाई नहीं हुई तो इस्तीफा दे दूंगा। रिहाई हुई। चारों शीर्ष पदाधिकारियों के तबादले और उजाड़े गए परिवारों को पुनर्वासित कराने की लड़ाई जारी रही। श्री बाबू की प्रत्यक्ष भागीदारी से दोनों लक्ष्य को हासिल किया गया। विस्तृत दास्तान फिर कभी। श्री बाबू ने पटने में अपने आवास पर कहा मंत्री हूँ तो क्या, चलिए, नए कलक्टर पी आर सिंहा को साथ कर पुनर्वास कराऊंगा। यही उन्होंने किया भी। मंत्री रहते हुए मेरी भावनाओं का कद्र जिस तरह से उन्होंने किया, एक तरह से सीमाओं का अतिक्रमण किया। किसी और से  इसकी उम्मीद नहीं थी। अनेकों  निकटतम मंत्रियों ने चुप्पी साध ली थी लेकिन श्री बाबू अपवाद साबित हुए। पुस्तक प्रेमी भी थे। मेरी किताबें पढकर खुश होते और उत्साहित करते थे। अफसोस है, हाल की रचित किताबें उन्हें भेंट न कर पाया। ऐसे जांबाज समाजवादी नेता के गुजर जाने का असीम दुख है। उनसे मिलने की आंतरिक इच्छा पूरी न हुई। विनम्र हार्दिक श्रद्धांजलि।

आज राजकीय सम्मान के साथ मुंगेर घाट में संपन्न होगा अंत्येष्टि कार्यक्रम
श्री बाबू का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ आज साहेबपुरकमाल विधानसभा अंतर्गत मुंगेर गंगा घाट पर किया जाएगा। उनका पार्थिव शरीर पटना आवास से 10:00 बजे विधानसभा लाया जाएगा, वहां से 11:00 बजे राज्य पार्टी कार्यालय, फिर 11:30 बजे  बेगूसराय के लिए प्रस्थान किया जाएगा। सड़क मार्ग से भाया बाढ़, बख्तियारपुर,मोकामा, राजेंद्र पुल,थर्मल गेट,जीरो माइल चौराहा, सुशील नगर, हर हर महादेव चौक, सुभाष चौक, बेगूसराय स्टेशन चौक, ट्रैफिक चौक बेगूसराय, बेगूसराय रामजानपुर चौक,बहदरपुर ढाला, पोखरिया, बलिया स्टेशन चौक, सनहा ढाला होते हुए भुजंगी उषा महाविद्यालय के प्रांगण में अंतिम दर्शन हेतु उनका पार्थिव शरीर भुजंगी उषा महाविद्यालय में रखा जाएगा। फिर वहां से पैतृक ग्राम खरहट होते हुए मुंगेर गंगा घाट में अंतिम संस्कार किया जाएगा।

श्री बाबू

 

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