I ♥️ Muhammad का जवाब अगर We also ♥️ Muhammad से दें तो पेश होगी नजीर

I ♥️ Muhammad
➡️देश के जिम्मेवार मुसलमानों ने की प्रकरण की पुरजोर निंदा
➡️बरेली जैसे वाक़ये बीजेपी के लिए साबित हुई मुँहमाँगी मुराद

समाचार विचार/सुशोभित/पटना: I ♥️ Muhammad वाले मौजूदा मसले पर बहुत सारे पहलुओं से नज़र डालने की ज़रूरत है, क्योंकि मामला संवेदनशील है और इसमें थोड़ी-थोड़ी ग़लती तमाम पक्षों से हुई है। मामले की शुरुआत 4 सितम्बर को रावतपुर, कानपुर में हुई। इसमें मुसलमानों ने I ♥️ Muhammad का परचम बुलंद किया। यह एक नई और मैं कहूँगा थोड़ी अटपटी अभिव्यक्ति थी, क्योंकि परम्परागत रूप से मुसलमान लोग हज़रत मोहम्मद की अक़ीदत में सल्ललल्लाहो अलैहि वसल्लम, रसूलुल्लाह, नबी-उल-इस्लाम, मुस्तफ़ा सरीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। बहरहाल, अगर नए चलन और नए दौर के मुसलमान अपने नबी के लिए I ♥️ Muhammad का इज़हार करना चाहते हैं तो इसमें भला किसी को क्यों कर ऐतराज़ होने लगा? बेशक़, उन्हें रसूलुल्लाह की मोहब्बत में डूबने का पूरा हक़ है।
साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने के आरोप में 24 पर दर्ज हुई प्राथमिकी
कानपुर में I ♥️ Muhammad का बैनर लगाने पर दूसरे धर्म के कुछ संगठनों ने आपत्ति ली थी। इसके बाद उस बैनर का स्थान बदला गया। अगले दिन बारावफ़ात के जुलूस में कथित रूप से दो वाहनों पर सवार मुसलमान नौजवानों ने दूसरे धर्म के पोस्टरों को फाड़ दिया। इसको लेकर कुल 24 पर एफ़आईआर दर्ज की गई- 9 पर नामजद और 15 पर ग़ैर-नामजद। लेकिन यह एफ़आईआर पैग़म्बर के ​लिए मोहब्बत के इज़हार पर नहीं थी। ये धारा 196 और 299 में दर्ज की गई थीं, जो साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने और दूसरों की आस्था को आहत करने के बारे में हैं। इलज़ाम यह भी था कि बारावफ़ात पर बिना अनुमति के जुलूस का रास्ता बदला गया और ग़ैर-रिवायती रास्ते पर बैनर-पोस्टर-लाइटिंग किए गए थे।

I ♥️ Muhammad

देश के जिम्मेवार मुसलमानों ने की प्रकरण की पुरजोर निंदा
लेकिन इससे मुसलमानों के भीतर यह नैरेटिव उभरकर सामने आया कि हिन्दुस्तान में उन्हें अपने नबी के लिए प्यार का इज़हार करने से भी रोका जा रहा है और इसके लिए मुस्लिम नौजवानों पर एफ़आईआर दर्ज की जा रही हैं। यह दलीलें यक़ीनन दुरुस्त नहीं थीं। लेकिन इसके बाद मुसलमानों ने सोशल मीडिया, वॉट्सएप्प आदि पर अपनी डीपी, कवर, पोस्ट्स में I ♥️ Muhammad का पोस्टर लगाना शुरू कर दिया। यूपी सहित देशभर के शहरों के मुसलमान अपने मोहल्लों में I ♥️ Muhammad की झंडियाँ लगाने लगे। बरेली में जुमे की नमाज़ के बाद यह मामला भड़क गया, जब मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान के लापरवाही भरे आह्वान पर जमा हुई मुसलमानों की भीड़ उत्तेजित हो गई और हिंसक प्रदर्शन पर आमादा हो गई। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। जितने भी ज़िम्मेदार मुसलमान हैं, उन्होंने एक सुर में इसकी निंदा की है।
हज़रत मोहम्मद ﷺ के नाम पर क़तई जायज़ नहीं है हुड़दंग 
फ़ेसबुक पर जनाब मोहम्मद ज़ाहिद ने नेक सलाह देते हुए कहा कि “हज़रत मोहम्मद ﷺ के नाम पर हुड़दंग क़तई जायज़ नहीं है, इससे तो बेहतर होगा कि नबी की सुन्नतों को अपनाएँ। एक छोटी-सी बात को हवा दी सदर साहब ने और क़ौम के जज़्बाती लोग सड़कों पर आ गए। अब गिरफ्तारियाँ होंगी, माँ-बाप परेशान होंगे, मुक़दमे चलेंगे, जेल होगी और कॅरियर तबाह होंगे। कुछ दिन बाद सब ठंडा हो जाएगा, लेकिन घर वाले मुक़दमा लड़ते-लड़ते चप्पल घिसेंगे!” जनाब ख़ुर्शीद अहमद ने फ़रमाया कि “हम एक अज़ीम शख़्स से अपनी मोहब्बत का इज़हार कर रहे हैं तो हमारा तरीक़ा भी अच्छा और बेहतर होना चाहिए। हज़रत मोहम्मद से अपनी मोहब्बत के इज़हार में भी एक एहतराम और एक शान होनी चाहिए। सड़कों पर इस तरह से उतरना नहीं चाहिए, भीड़ इकट्ठा नहीं करनी चाहिए।” जनाब मोहम्मद शाहीन राना का कहना था कि “हमें रसूल अल्लाह से मोहब्बत है तो ये हमारे दिल-दिमाग़-ईमान का मामला है, हमें गले में तख्तियां लटकाकर चलने की ज़रूरत नहीं है।”
बरेली जैसे वाक़ये बीजेपी के लिए साबित हुई मुँहमाँगी मुराद
बरेली वाले दुर्भाग्यपूर्ण वाक़ये के बाद यूपी के वज़ीरे-आला योगी साहब ने बहुत ही कड़े शब्दों में इस पर अपनी बातें कहीं और उनके समर्थकों ने पुरज़ोर अंदाज़ में इसका समर्थन किया। कहना ना होगा कि बरेली जैसे वाक़ये बीजेपी के लिए मुँहमाँगी मुराद जैसे होते हैं। इससे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तेज़ और नुकीला होता है। सच यही है कि जब भी मुसलमान सड़कों पर उतरकर बलवा करता है, बीजेपी एक और चुनाव जीतने की ओर क़दम बढ़ा देती है। बिहार-बंगाल सामने हैं, फिर यूपी की बारी आने वाली है। वैसे में समझदारीभरा क़दम क्या होना चाहिए, ये मुसलमान ख़ुद सोच सकते हैं। रावतपुर, कानपुर में एक ग़ैर-रिवायती रास्ते पर I ♥️ Muhammad का परचम बुलंद करना एक मामूली घटना थी, जिसे सूझ-बूझ से सुलझाया जा सकता था। ये सच है कि राज्यसत्ता क़ानून-व्यवस्था क़ायम रखना चाहती है। लेकिन हमने देखा है कि देश में बहुसंख्यक समुदाय को अपने धर्म के पालन- सड़कों पर जुलूस, कथा-पाण्डाल, लाउडस्पीकर, कांवड़ यात्रा आदि में जिस प्रकार की छूट दी जाती है, वैसी छूट अल्पसंख्यक समुदाय को देने में मौजूदा हुकूमत हिचकती है। लेकिन संविधान का अनुच्छेद 25 हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका आचरण करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार लोक व्यवस्था और नैतिकता के अधीन है। संविधान भारत के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है, यह किसी पर कमोबेश नहीं है।
I ♥️ Muhammad का जवाब अगर We also ♥️ Muhammad से दें तो पेश होगी नजीर
मुसलमानों के दिल में हज़रत मोहम्मद के लिए जो अक़ीदत है, उसको भी समझने की संवेदनशील कोशिश की जानी चाहिए। उनके पास सैकड़ों देवी-देवता नहीं हैं, ले-देकर एक पैग़म्बर ही हैं। इस पर अल्लामा इक़बाल ने क्या ख़ूब कहा है : “परवाने को चराग़ है बुलबुल को फूल बस, सिद्दीक़ के लिए है ख़ुदा का रसूल बस।” अलबत्ता यहाँ सिद्दीक़ से उनका आशय ख़ुल्फ़ाए-राशीदिन हज़रत अबू-बक्र से था, लेकिन हर मुसलमान के लिए ये बात सच है। क़ुरआन हज़रत मोहम्मद के ज़रिये आई, सुन्नतें उनके ज़​रिये वाक़य हुईं, अहले-बैत के सिरमौर वो हैं, इस्लाम के आखिरी पैग़म्बर वो हैं- अपने नबी के बाबत मुसलमानों के अहसासात कुछ जुदा हैं। वो तमाम बातों पर सब्र कर सकते हैं- और करते ही हैं- लेकिन इस नुक़्ते पर बेचैन हो जाते हैं। हम इसे समझें। I ♥️ Muhammad का जवाब अगर We also ♥️ Muhammad से दे दें तो किसी का कुछ जाता नहीं है, लेकिन समाज में अमन की एक नज़ीर क़ायम हो जाती है। इसी अपील के साथ दोनों पक्षों से भाइयों से इल्तिजा करता हूँ कि अब बीती को बिसारकर आगे की सुध लेवें।
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