बखरी विधायक का सनसनीखेज आरोप: शराब माफियाओं का संरक्षक है डीएसपी कुंदन कुमार

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➡️विधायक सूर्यकांत पासवान ने प्रेस वार्ता के दौरान पुलिस की कार्यशैली पर निकाली जमकर भड़ास
➡️डीजीपी से की एसडीपीओ के मोबाइल की उच्चस्तरीय जांच की मांग
➡️शराबबंदी के बाद स्मैक, गांजा और सुलेशन की गिरफ्त में हैं बखरी के युवा
समाचार विचार/बखरी/बेगूसराय: बखरी सीपीआई कार्यालय में सोमवार को विधायक सूर्यकांत पासवान ने प्रेस वार्ता का आयोजन कर बखरी एसडीपीओ कुंदन कुमार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। विधायक ने कहा है कि एसडीपीओ शराब माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं और टाइगर मोबाइल के गिरफ्तार जवानों ने इसकी पुष्टि की है। विधायक ने पूछा कि जब जवान पकड़े गए तो 135 कार्टन शराब कहां गायब हो गई? उन्होंने कहा कि शराबबंदी की आड़ में ऐसे भ्रष्ट आचरण वाले पुलिस पदाधिकारी शराब माफियाओं के साथ मिलकर करोड़ों करोड़ रुपए की कमाई कर रहे हैं। आज अगर बखरी में शराबबंदी कानून असफल है, तो उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह एसडीपीओ कुंदन कुमार का भ्रष्ट आचरण है।
डीजीपी से की एसडीपीओ के मोबाइल की उच्चस्तरीय जांच की मांग
विधायक श्री पासवान ने डीजीपी विनय कुमार से एसडीपीओ के मोबाइल की उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए कहा कि पुलिसकर्मियों की मिलीभगत से इस क्षेत्र में सूखा नशा और अन्य नशे का धंधा फल-फूल रहा है। उन्होंने नगर क्षेत्र में चोरी की बढ़ती घटनाओं और पुलिस की नाकामी पर भी चिंता जताई।

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शराबबंदी के बाद स्मैक, गांजा और सुलेशन की गिरफ्त में हैं बखरी के युवा
“युवा देश का भविष्य होते हैं” यह कहावत अब बखरी जैसे छोटे कस्बों में सवालों के घेरे में है। यहां की सड़कों, गलियों और सुनसान जगहों पर अब किताबों से ज्यादा स्मैक की पुड़िया और सुलेशन की बोतलें दिखाई देती हैं। पढ़ने-लिखने की उम्र में बच्चे नशे के गिरफ्त में आ रहे हैं और समाज मूक दर्शक बना हुआ है।बिहार में शराबबंदी लागू हुए आठ- नौ वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन इसके बाद नशे का चेहरा बदल गया है। अब शराब की जगह स्मैक, गांजा, सुलेशन, सिगरेट और यहां तक कि इंजेक्शन जैसे सूखे नशे तेजी से युवाओं को अपनी चपेट में ले रहे हैं। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि 13 से 20 वर्ष की उम्र के लड़के इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं।बखरी के स्टेशन रोड, मालगोदाम, पुरानी दुर्गा स्थान मिडिल स्कूल के पास, गोढियारी ढाला चौक, रौता मुसहरी रोड, पुरानी थाना चौक और महादेव स्थान के आस-पास के सुनसान इलाकों में यह धंधा बेरोकटोक चल रहा है। सूत्रों की मानें तो स्मैक की पुड़िया 50 से 200 रुपये में आसानी से मिल जाती है। कई युवा स्कूल-कॉलेज छोड़कर इन्हीं अड्डों पर समय गुजारते देखे जा सकते हैं।यह सिर्फ किसी एक वर्ग की समस्या नहीं रही। अब शिक्षित और संपन्न परिवारों के बच्चे भी इस दलदल में फंसते जा रहे हैं।
सामूहिक प्रयास से ही लगेगा नशाखोरी पर लगाम
नशे की गिरफ्त में आ चुके कई युवक शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं, लेकिन उनके परिवारों को इसकी भनक तक नहीं लगती जब तक बहुत देर न हो जाए।हालांकि पुलिस और प्रशासन द्वारा नशीले पदार्थों की बिक्री पर रोक की बात की जाती है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। स्थानीय स्तर पर ऐसे धंधेबाजों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिलती। नशे का नेटवर्क सुनियोजित ढंग से चल रहा है और प्रशासन की चुप्पी इसे बढ़ावा दे रही है।जरूरत है सामूहिक प्रयास की। इस बेकाबू होती समस्या से निपटने के लिए सिर्फ पुलिस या प्रशासन ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग को जागरूक होना होगा। स्कूल-कॉलेजों में नशा विरोधी अभियान चलाने, माता-पिता को सजग करने और नशा मुक्ति केंद्रों को सक्रिय बनाने की ज़रूरत है, वरना यह नशा एक पूरी पीढ़ी को निगल जाएगी।

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