तैयारी: बेगूसराय के तेघड़ा में होगा विश्व के दूसरे सबसे बड़े मेले का आयोजन

तैयारी

 

 

➡️ऐतिहासिक महत्व का जीवंत गवाह है तेघड़ा का श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला
➡️इस बार 8 किलोमीटर के क्षेत्र में 15 पूजा मंडपों का हो रहा है निर्माण 

समाचार विचार/अशोक कुमार ठाकुर/तेघड़ा/: तेघड़ा के भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेले का इतिहास गौरवमयी रहा है। श्री कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा,वृंदावन में भारत का सबसे बड़ा जन्माष्टमी मेला लगता है। लेकिन कम लोगों को पता होगा कि भारत का दूसरा सबसे बड़ा श्री कृष्ण जन्मोत्सव मेला बेगूसराय जिले के तेघड़ा में लगता है। यहां धर्म और जात-पात से ऊपर उठकर सभी वर्गों के लोग अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस वर्ष भी इस ऐतिहासिक मेले को लेकर इलाके के लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है। आयोजन समिति मेले के सफल संचालन के लिए दिन रात एक किए हुए है।
इस बार 8 किलोमीटर के क्षेत्र में 15 पूजा मंडपों का हो रहा है निर्माण 
इन पांच दिवसीय ऐतिहासिक श्री कृष्ण जन्मोत्सव में लगभग 8 किलोमीटर के क्षेत्र में 15 पूजा मंडपों के निर्माण को लेकर तैयारी जोरों पर है। विभिन्न मेला समितियां द्वारा पूजा मंडपों के निर्माण के लिए कार्य रूप दिया जा रहा है। विभिन्न जगहों पर मुख्य द्वार एवं मंडपों के निर्माण के लिए बांस बल्ला गाड़ने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है। दूसरी तरफ बाहर से आए कई कुशल कारीगरों द्वारा भगवान श्री कृष्ण, राधा सहित अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा का निर्माण भी तेजी से चल रहा है। यहां मेला देखने के लिए बिहार ही नहीं नेपाल, बंगाल, राजस्थान, यूपी, दिल्ली, असम, उड़ीसा, झारखंड के साथ विदेश में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी आते हैं। इतने बड़े पैमाने पर मेला का आयोजन होने के बावजूद राजकीय मेला का दर्जा नहीं मिलना जिले के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता का परिचायक है।

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1927 में अचानक प्लेग ने तेघड़ा में ले लिया था महामारी का रूप
बुजुर्गों के अनुसार तेघड़ा जन्माष्टमी का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है। वर्ष 1927 में तेघड़ा में प्लेग की बीमारी भयंकर महामारी के रूप ले ली थी। सैकड़ों की संख्या में लोग प्लेग में मारे गए थे। महामारी के कारण तेघड़ा वासी बाजार छोड़कर गांवों में जाकर बसना शुरू कर दिया था। कई लोग तेघड़ा छोड़कर दूसरे शहरों एवं राज्यों में जाकर बस गए थे। प्लेग की इस भयंकर महामारी से बचने के लिए लोगों ने काफी उपाय किए। बड़े-बड़े यज्ञ और अनुष्ठान किया गया। नामी वैद्यों को बुलाया गया, लेकिन फिर भी कोई निदान नहीं निकला। लोग परेशान होकर भगवान की पूजा करने लगे थे। वहीं 28 फरवरी 1928 को भारत भ्रमण के दौरान चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली तेघड़ा पहुंची। कीर्तन मंडली तेघड़ा में रात में रुकी थी। इसी दौरान तेघड़ा बाजार के प्रबुद्ध लोगों ने कीर्तन मंडली के संतों से मिलकर प्लेग से निजात पाने के उपाय पूछा था। तब मंडली के एक संत ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने की सलाह दी थी।
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने के साथ ही खत्म हो गया प्लेग
चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली की सलाह पर सर्वप्रथम 1928 में स्टेशन रोड में शिवमंदिर के समीप स्व. वंशी पोद्दार, विशेश्वर लाल, लखन साह के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। तत्पश्चात कुछ ही दिनों के बाद प्लेग से लोगों को छुटकारा मिल गया था। तब से तेघड़ावासियों की आस्था भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ गई। 1929 में स्व. सूर्यनारायण पोद्दार हाकिम, नुनु पोद्दार, हरिलाल सहित अन्य के नेतृत्व में मेन रोड़ में मुख्य मंडप में भी मनाया जाने लगा। यह सिलसिला दशकों चला। 1980 में चैती दुर्गा स्थान व 1990 के दशक में प्रखंड कार्यालय परिसर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का मेला मनाया गया। धीरे-धीरे यह मेला तेघड़ा में वृहद रूप धारण कर दूसरे वृंदावन का रूप ले लिया। मंडपों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ झूला, सर्कस, थिएटर, मीना बाजार आदि भी लगाए जाने लगे। इस बार 16 अगस्त की आधी रात भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाने के साथ ही 17 अगस्त से 21 अगस्त तक पांच दिवसीय मेला का आयोजन होगा और 21 अगस्त को ही विसर्जन शोभा यात्रा निकाली जाएगी।
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