हस्तक्षेप: काबर टाल के लिए अभिशाप साबित होगा चेकडैम का निर्माण

साहेबपुरकमाल
काबर
वरिष्ठ पत्रकार महेश भारती
➡️जनविरोधी निर्णय पर घातक साबित होगी सांसद, बखरी और चेरियाबरियारपुर विधायक की चुप्पी
➡️सरकारी राशि की लूट और जनविरोधी प्रोजेक्ट है चेकडैम बनाने की स्वीकृति 

समाचार विचार/महेश भारती/बेगूसरायकाबर टाल के जलजमाव को बनाए रखने के लिए वर्तमान में चेकडैम का निर्माण करवाना  अवैज्ञानिक, विकास अवरोधी और क्षेत्रीय खेती से जुड़े लोगों के लिए अभिशाप जैसा है। इस चेकडैम योजना को बनाने वाले सरकारी अधिकारियों को इस इलाके के भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक धरातलीय अनुभव की घोर कमी है। काबर पक्षी अभयारण्य अधिसूचना के 39 बरसों बाद भी सरकार के संबंधित विभागीय और प्रशासनिक अधिकारी तथा इस क्षेत्र के जनविरोधी एमएलए और एमपी ने भी इसके इतिहास भूगोल कभी शायद ही खंगाले और सरकारी अधिकारियों की अदूरदर्शिता भरे निर्णयों में हां जी-हां जी की रट लगाते रह गए। आखिर चेक डैम बनाकर संबंधित सरकारी विभागों के अधिकारी काबर प्रक्षेत्र की उपजाऊ जमीन को बर्बाद कर इलाके के लोगों को खेती से विमुख कर दूसरे प्रदेशों की ओर पलायन को मजबूर करने, उनके रोजगार को मार देने और क्षेत्रीय लोगों को कंगाल बना देने की योजना पर क्यों राशि खर्च करने पर आमादा हैं।
जनविरोधी निर्णय पर घातक साबित होगी सांसद, बखरी और चेरियाबरियारपुर विधायक की चुप्पी
ऐसी जनविरोधी काम पर बखरी, चेरियाबरियारपुर के विधायक और बेगूसराय जिले के सांसद तथा विभिन्न दलों के नेतागण क्यों मौन हैं? इस चेकडैम के निर्माण से काबर क्षेत्र की सूखी और उपजाऊ दोफसला भूमि के जलजमाव के आगोश में आना तय है। लगभग पन्द्रह हजार एकड़ भूमि दलदली बन जाएगी और किसान समय पर उसमें फसल नहीं उपजा सकते हैं। काबर संग्रह नहर में चेक डैम का निर्माण प्रथम पंचवर्षीय योजना में सिंचाई विभाग की ओर से किसानों की मदद के लिए यहां की जल निकासी के लिए बनी महत्वाकांक्षी नहर को मार देने जैसा होगा। यह महत्वाकांक्षी योजना वर्ष 1951-56 तक बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा श्रीकृष्ण सिंह और सिंचाई मंत्री रामचरित्र सिंह के नेतृत्व में अनुभवी इंजीनियरों की टीम द्वारा बनाई गयी थी और तब लगभग क्षेत्र के बीस हजार एकड़ से अधिक जमीन से जलजमाव की समस्या दूर कर उन्हें समय पर खेती लायक बनाने की पहल की गयी थी।
डॉ. श्री कृष्ण सिंह ने बनाई थी काबर से बगरस तक बूढ़ी गंडक नदी तक नहर निकालने की योजना 
आज के चेकडैम की योजना बनाने वाले इंजीनियर और उन्हें स्वीकृति दिलाने वाले प्रशासनिक अधिकारी तथा हमारे एमपी एमएलए शायद उस महत्वाकांक्षी योजना की फाइल भी पढ़ लेते, तो काबर क्षेत्र को लेकर इस तरह की अवैज्ञानिक चेक डैम बनाने की बात वे नहीं करते। देश की आजादी के बाद इस इलाके के लोगों और किसानों की पीड़ा दूर करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की पहल पर काबर और उससे जुड़े चौरों का जलजमाव दूर कर उनमे खेती सुनिश्चित करने तथा उन्हें दोफसला खेती लायक बनाने के लिए काबर से बगरस तक बूढ़ी गंडक नदी तक नहर निकालने की योजना बनाई। इसके लिए एक चेकडैम के रूप में बगरस में सुलिस गेट का निर्माण कराया गया। वर्ष 1951 में इस नहर की खुदाई शुरू हुई और वर्ष 1956 में यह काम पूरा हुआ। तब इस नहर को बनाने में 14 लाख 95 हजार सात सौ अट्ठाइस रूपये ख़र्च हुए थे। यह शहर 392 चेन लंबी और 44 फीट चौड़ी थी। इसकी गहराई औसत 11 फीट थी। बगरस में बने सुलीस गेट से पानी को नियंत्रित किया जाने लगा और इस नहर ने इलाके के किसानों और मजदूरों की तकदीर बदल दी। काबर बगरस नहर की सफाई न होने, उनके अतिक्रमण और जगह-जगह उसपर पुल तथा सड़क निर्माण करा देने तथा विभागीय अधिकारियों के उपेक्षापूर्ण रवैये से जहां यह नहर प्रणाली प्रभावित हुई।
सरकारी राशि की लूट और जनविरोधी प्रोजेक्ट है चेकडैम बनाने की स्वीकृति 
खुद बेकार पड़े नहर क्षेत्र में अब आठ करोड़ पचास लाख 22 हजार 152 रूपये की लागत से हरसाईन नामक स्थान पर चेकडैम बनाने की स्वीकृति सरकारी राशि की लूट और जनविरोधी प्रोजेक्ट ही साबित होगा। बेगूसराय के सांसद और चेरियाबरियारपुर तथा बखरी के विधायक को इसपर सही पहल कर इलाके के भूगोल और इतिहास तथा इसके नफा नुकसान का आकलन कराने के बाद ही इस योजना को अमलीजामा पहनाने की बात करनी चाहिए। इस चेकडैम के बनने के बाद इलाके के रजौर सकरा, दुनही, एकमबा, नारायण पीपर, परोडा, खांझापुर, चेरियाबरियारपुर, सकरबासा, कुंभी, विक्रमपुर, श्रीपुर, मेहदाशाहपुर, मंझौल पंचायत एक, दो, तीन तथा चार, पहसारा पूर्वी, महेशवारा पंचायतों की लगभग पांच लाख से ज्यादा आबादी को जलजमाव का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। उनकी जमीन जलजमाव की वजह से खेती लायक समय पर नहीं होगी। इस चेक डैम के निर्माण कार्य का काबर और आसपास के किसानों का विरोध करना स्वाभाविक है। आज के अधिकारी धरातलीय सच को समझने के या तो काबिल नहीं हैं या फिर फिर किसानों और मजदूरों के दर्द उन्हें मालूम नहीं हैं। बेगूसराय के जिलाधिकारी लोकल एक्सपर्ट और काबर की धरातलीय इतिहास को समझकर ही कोई निर्णय लें तो बेहतर होगा।

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