➡️अपने नाम की तरह ही करुणामयी न्यायाधीश करुणानिधि प्रसाद आर्या ने पेश की मिसाल
➡️माता पिता के झगड़े से परेशान बच्ची की फरियाद से भाव विह्वल हुए जज साहब
समाचार विचार/बेगूसराय: देश भर में हाल के दिनों में न्यायपालिका पर उठ रहे सवालों के बीच बेगूसराय के एक जज साहब ने कुछ ऐसा कर दिया, जो उनके समकक्ष माननीय न्यायाधीशों के लिए मिसाल बन गई है। न केवल कोर्ट कैंपस के प्रत्यक्षदर्शी, बल्कि जिले के लोग जज साहब के इस संवेदनशील और मानवीय कृत्य की सराहना करते नहीं थक रहे हैं। अपने नाम की तरह ही करुणामयी न्यायाधीश करुणानिधि प्रसाद आर्या ने जो मिसाल पेश की है, वह वाकई विमर्श का विषय है। न्याय की आस में पीढ़ी दर पीढ़ी अदालत के दरवाजे पर जूते घिसते फरियादियों को ऐसे न्यायाधीशों की आवश्यकता है, जिनमें अभी भी संवेदना जीवित है।
बेगूसराय में जज साहब ने जब बच्ची को सौंपी अपनी कुर्सी तो दंग रह गए लोग
दरअसल जिला विधिक सेवा प्राधिकार में एक अनोखा मामला तब सामने आया, जब इसके समाधान हेतु जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव न्यायाधीश करुणानिधि प्रसाद आर्या ने माता-पिता के झगड़ों से परेशान एक बच्ची को व्यथित देखकर चल रहे विवाद के समाधान हेतु उनकी बच्ची को ही न्याय करने के लिए अपनी कुर्सी पर बिठा दिया। अदालत परिसर में जज साहब के इस त्वरित निर्णय से मौजूद लोग दंग रह गए। विदित हो कि विगत कुछ दिन पहले एक पति-पत्नी का मामला जिला विधिक सेवा प्राधिकार में सुलह हेतु आया था। पत्नी का आरोप है कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है और इस वजह से वह काफी परेशानी का सामना कर रही है। बच्चे भी माता-पिता की लड़ाई को देखकर काफी परेशान रह रहे हैं। संयोग से सुनवाई के दिन माता पिता के साथ वह बच्ची भी अदालत परिसर में मौजूद थे और उसके चेहरे पर उमड़ रही परेशानी और बेचैनी के भाव को देखकर जज साहब द्रवित हो उठे और तत्क्षण ही बच्ची को अपनी कुर्सी पर बिठाकर उसे न्यायाधीश का दर्जा दे दिया और उसे फैसला सुनाने हेतु आदेशित कर दिया, जिसे देखकर उसके माता पिता भी शर्मसार हो गए।
आगामी 15 अक्टूबर को महज औपचारिक होगी मामले की सुनवाई
जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव न्यायाधीश करुणानिधि प्रसाद ने खुद अपनी कुर्सी पर उनकी बच्ची को बैठाया। उसके बाद माता-पिता को उस बच्ची ने भरी अदालत में यह समझाने का प्रयास किया कि आप दोनों के झगड़े में हम दोनों भाई-बहन की जिंदगी परेशान और बर्बाद हो रही है। इसलिए आप दोनों आपस में सुलह करें। बच्ची की भावनात्मक अपील से शर्मिंदगी और पछतावे के बोझ तले दबे हुए बच्ची के माता पिता निःशब्द दिख रहे थे। बच्ची की बातों को सुनकर माता और पिता भावुक हो उठे और तत्क्षण सुलह की ओर अग्रसर भी हो गए। हालांकि, आगामी 15 अक्टूबर को फिर इस मामले की सुनवाई होनी है, जिसमें संभावना है कि बीच का रास्ता निकल ही आएगा। अदालत में मौजूद लोगों ने बताया कि जिला प्राधिकार के सचिव करुणानिधि प्रसाद आर्या ने एक बेहतरीन प्रयास किया है। इस प्रयास का असर दिखने की संभावना बलवती हो गई है। लोगों को उम्मीद है कि बच्ची के माता पिता आपसी गिला शिकवा भूलकर अपनी जिंदगी पूर्ववत जीने का ही निर्णय लेंगे। उन्होंने मिसाल पेश करते हुए यह बताने की भी कोशिश की है कि न्यायालय का दरवाजा खटखटाए बगैर माता-पिता के झगड़ों को बच्चे ही सुलझा सकते हैं।
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