➡️1992 में मवेशी का नाद रखने के क्रम में हुई थी मारपीट की घटना और 2025 में आया न्यायालय का फैसला
➡️इस मामले में अब तक न्यायालय को जांच रिपोर्ट भी नहीं सौंपे हैं केस के आईओ
➡️न्यायालय के फैसले से अचंभित हैं वीरपुर के स्थानीय लोग
➡️न्यायालय ने सुनाई है बीस हजार का अर्थदंड और सश्रम कारावास की सजा
समाचार विचार/वीरपुर/बेगूसराय: बेगूसराय में न्यायालय का फैसला चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल वीरपुर थाना क्षेत्र के सहुरी पंचायत के लगभग 76 वर्षीय एक बुजुर्ग रिटायर शिक्षक सह राजकीय सिमरिया कल्प वास मेला के महासचिव रविन्द्र सिंह को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ सबा आलम के द्वारा 20 हजार रुपए अर्थदंड के साथ 10 वर्ष के लिए कारावास की सजा सुनाए जाने और गिरफ्तार कर जेल भेज देने के फैसला से थाना क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
न्यायालय के फैसले से अचंभित हैं वीरपुर के स्थानीय लोग
लोग चौक चौराहों पर,पान की दुकानों पर मामले को लेकर चर्चा कर रहे हैं कि 76 वर्ष की उम्र में लोग श्मशान जाते हैं। वैसे बुजुर्ग को जो आईओ के रिपोर्ट के बिना और ना कोई सबुत, केवल पारिवारिक लोगों की गवाही पर इतना बड़ा सजा मुकर्रर कर दिया गया है।
1992 में मवेशी का नाद रखने के क्रम में हुई थी मारपीट की घटना
इस संबंध में पीड़ित के पुत्र अशोक कुमार, शशिभूषण सिंह समेत अन्य ग्रामीणों ने बताया कि गैर मजरूआ जमीन पर रखे नाद को हटाने के लिए उपजे विवाद को लेकर 1992 में मारपीट हुआ था। जिसमें मामले के तत्कालीन आईओ के द्वारा अभी तक ना रिपोर्ट और ना ही सबुत पेश किया गया है, फिर भी न्यायाधीश ने सजा दे दिया है। लोगों ने कहा यह मामला कि देश की न्यायिक व्यवस्था की लेट लतीफी का ज्वलंत उदाहरण है। ऐसे भी मामले देखने को मिलते हैं कि मुकदमों के बोझ तले दबे जिला, हाइ और सुप्रीम कोर्ट एक दो पीढ़ी गुजर जाने के बाद अपना अंतरिम फैसला सुनाती है। लोगों ने इस मसले पर बहुत ही तीखी प्रक्रिया दी है।
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